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________________ ८२ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, २, ६. रिमवगं गुणेऊण तेण घणाघणपल्ले भागे हिदे सासणसम्माइद्विरासी आगच्छदि । केण कारणेण ? घणपल्लवरिमवग्गेण घणाघणपल्ले भागे हिदे घणपल्लो आगच्छदि । पुणो वि पदरपण घणपले भागे हिदे पलिदोवमो आगच्छदि । पुणो वि असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमे भागे हिदे सासणसम्माइट्ठिरासी आगच्छदि । एवमागच्छदित्ति कट्टु गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदेवि - सास सम्माडिरासी आगच्छदि । तस्स अच्छेदणयसलागा केत्तिया ? रूवूणण वहि रूहि पलिदोवमस्स अद्धच्छेदणए गुणिय असंखेज्जावलियद्धच्छेदणय पक्खित्तमेत्ता । अधवा असंखेज्जावलियाहि पदरपल्लं गुणेऊण तेण घणपल्लुवरिमवग्गं गुणेऊण तेण पुणो घणाघणपलं गुणेऊण तस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे सासणसम्माइदुिरासी आगच्छदि । केण कारण ? घणाघणेण उवरिमवग्गे भागे हिदे घणाघणो आगच्छदि । पुणो वि वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका घनाघनपल्य में भाग देने पर सासादन - सम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, क्योंकि, घनपल्यके उपरिम वर्गका घनाघनपत्य में भाग देने पर घनपत्य आता है । पुनः प्रतरपल्यका घनपत्य में भाग देने पर पल्योपम आता है । पुनः असंख्यात आवलियोंका पल्योपममें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है । घनाघनधारामें इस प्रकार सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया । उदाहरण ६५५३६ x ६५५३६ x ६५५३६ ३२ x ६५५३६' x ६५५३६ x ६५५३६ = २०४८ सा. उक्त भागहार के जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आ जाता है । उदाहरण – उक्त भागहारके अर्धच्छेद १३३ होते हैं, इसलिये उतनीवार उक्त भज्य मान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि २०४८ आती है । शंका- उक्त भागहारकी अर्धच्छेदशलाकाएं कितनी हैं ? समाधान - नोमेंसे एक कम करके जो शेष रहते हैं उनसे पल्योपमके अर्धच्छेदों को गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें असंख्यात आवलियों के अर्धच्छेद मिला देने पर उक्त भागहारके अर्धच्छेद होते हैं उदाहरण - ९ - १ = ८x१६ = १२८ +५ = १३३. अथवा, असंख्यात आवलियोंसे प्रतरपल्यको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनपल्य के उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनाघनपल्यको गुणित करके आये हुए लब्धका घनाघनपल्यके उपरिम वर्गमें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, क्योंकि, घनाघनपल्यका उसके उपरिम वर्गमें भाग देने पर घनाघनपल्य प्रतिषु ' घणपङ्कं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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