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________________ १, २, ६. ] दव्वपमाणानुगमे सासणसम्म इट्टि आदि पमाणपरूवणं [ ८१ आगच्छदि । केण कारणेण ? घणपल्लेणुवरिमवग्गे भागे हिदे घणपल्लो आगच्छदि । पुणो विपदरपण घणपल्ले भागे हिदे पलिदोवमो आगच्छदि । पुणो वि असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमे भागे हिदे सासणसम्माइद्विरासी आगच्छदि । एवमागच्छदिति गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि सास सम्माइट्ठिरासी आगच्छदि । तस्सद्धच्छेदणयसलागा केत्तिया १ एगरूवं विरलिय विगं करिय अण्णोष्णन्भत्थरासितिगुणरूवृणेण पलिदोवमस्स अद्धच्छेदणाओ गुणिय असंखेज्जावलियाणं अद्धच्छेदणयपक्खित्तमेत्ता । एवमुवरि वि अद्धच्छेदणयाणं संकलणविहाणं वतव्वं । एत्थ दुगुणादिकरणं कायव्वं । एवं संखेज्जासंखेज्जाणतेसु यव्वं । अट्ठरुव परूवणा गदा । घणघणे वत्तस्साम । असंखेज्जावलियाहि पदरपल्लं गुणेऊण तेण घणपल्लव सासादन सम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आ जाता है, क्योंकि, घनपल्यका घनपल्यके उपरिम वर्ग भाग देने पर घनपल्य आता है । पुनः प्रतरपल्यका घनपल्य में भाग देने पर पल्योपम आता है । पुनः असंख्यात आवलियोंका पल्योपममें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है । घनधारामें इसप्रकार भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया । उदाहरण-: ६५५३६ x ६५५३६ ३२ x ६५५३६' x ६५५३६ १ उक्त भागद्दारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है । उदाहरण – उक्त भागहार के ८५ अर्धच्छेद होते हैं, इसलिये ८५ वार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी २०४८ प्रमाण सासादनसम्यग्दृष्टि राशि आती है । शंका - उक्त भागहारकी अर्धच्छेदशलाकाएं कितनी होती हैं ? = २०४८ सा. समाधान - एकका विरलन करके और उसे दोरूप करके परस्पर गुणा करनेसे उत्पन्न हुई राशिको तीनसे गुणा करके जो लब्ध आवे उसमेंसे एक कम करके शेषसे पल्योपमके अर्धच्छेदों को गुणित करके जो संख्या आवे उसमें असंख्यात आवलियोंके अर्धच्छेद मिला देने पर उक्त भागहारके अर्धच्छेद होते हैं । उदाहरण – २ = २४३ = ६ - १ =५x१६ = ८० + ५ = ८५. १ इसीप्रकार ऊपर भी अर्धच्छेदोंके संकलन करनेके विधानका कथन करना चाहिये । यहां पर द्विगुणादिकरणविधि करना चाहिये । इसीप्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्तस्थानों में भी ले जाना चाहिये । इसप्रकार घनधारा प्ररूपणा समाप्त हुई । अब घनाघनधारामें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं— असंख्यात आवलियोंसे प्रतरपल्यको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनपल्य के उपरिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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