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________________ ८० ] छक्खंडागमे जीवाणं एवं संखेज्जासंखेज्जाणंतेसु णेयच्वं । वेरूवपरूवणा गदा । अरू वत्तस्साम । असंखेज्जावलियाहि पदरपल्लं गुणेऊण घणपल्ले भागे हिदे सासणसम्माइद्विरासी आगच्छदि । केण कारणेण ? पदरपल्लेण घणपल्ले भागे हिदे पलिदोवममागच्छदि । पुणो वि असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमे भागे हिदे सास सम्माइरािसी आगच्छदि । एवमागच्छदिति कट्टु गुणेऊग भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अर्द्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि सासणसम्माइदिरासी आगच्छदि । तस्स अद्धच्छेद्णयसलागा केत्तिया ? दुगुणिदप लिदोवमद्धच्छेदणएसु असंखेज्जावलियाणं अद्धच्छेदणयपक्खित्तमेत्ता । अथवा असंखेज्जावलियाहि पदरपलं गुणेऊण तेण गुणिदरासिणा घणपलं गुणेऊण घणपल्लउवरिमवग्गे भागे हिदे सासणसम्म इडिरासी शलाकाएं आ जाती है । उदाहरण-२ २=४-१=३x १६ = ४८ +५ =५३. [ १, २, ६. १ १ इसीप्रकार संख्यात असंख्यात और अनन्तराशिमें भी ले जाना चाहिये । इसप्रकार द्विरूपप्ररूपणा समाप्त हो गई । अब घनधारामें गृहीत उपरिम विकल्प बतलाते हैं- असंख्यात आवलि - योंसे प्रतरपल्यको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका घनपल्य में भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आ जाता है, क्योंकि, प्रतरपल्यका घनपत्य में भाग देने पर पल्योपम आता है । पुनः असंख्यात आवलियोंका पल्योपममें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है । घनधारामें इसप्रकार सासादनसम्यदृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया । उदाहरण ६५५३६३ = २०४८ सासादन सम्यग्दृष्टि. ३२ × ६५५३६' उक्त भागहार के जितने अर्धच्छेद हों उननीवार उक्त भज्यमानराशि घनपल्यके अर्धच्छेद करने पर भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आ जाता है । उदाहरण - उक्त भागहार ३२ x ६५५३६' के अर्धच्छेद ३७ होते हैं; इसलिये ३७ वार उक्त भज्यमान राशि ३६५३६२ के अर्धच्छेद करने पर भी २०४८ आते हैं । शंका - उक्त भागद्दारकी अर्धच्छेदशलाकाएं कितनी हैं ? समाधान - द्विगुणित पल्योपमके अर्धच्छेदों में असंख्यात आवलियोंके अर्धच्छेद मिला देने पर उक्त भागद्दारकी अर्धच्छेद शलाकाएं होती हैं । उदाहरण - १६x२ = ३२+५= ३७. अथवा, असंख्यात आवलियोंसे प्रतरपल्यको गुणित करके जो गुणितराशि लब्ध आवे उससे धनपल्यको गुणित करके लब्ध राशिका घनपल्यके उपरिम वर्ग में भाग देने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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