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________________ [७९ १, २, ६.] दवपमाणाणुगमे सासणसम्माइडिआदिपमाणपरूवणं रासी आगच्छदि । तस्स अद्धच्छेदणयसलागा केत्तिया? असंखेज्जावलियद्धच्छेदणयाहियपलिदोवमद्धच्छेदणयमेत्ता। अधवा असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमं गुणेऊण तेण गुणिदरासिणा पदरपल्लं गुणेऊण तम्सुवरिमवग्गे भागे हिदे सासणसम्माइट्ठिरासी आगच्छदि । केण कारणेण ? पदरपल्लेण तस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे पदरपल्लो आगच्छदि । पुणो वि पलिदोवमेण पदरपल्ले भागे हिदे पल्लो आगच्छदि । पुणो असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमे भागे हिदे सासणसम्माइट्टिरासी आगच्छदि । एवमागच्छदि त्ति कह गुणेऊण भागग्गहणं कदं। तस्स भागहारस्म अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि सासणसम्माइहिरासी आगच्छदि । म भागहारस्प्त अद्धच्छेदणयसलागा केत्तिया? पलिदोवमादो उपरि चडिदद्धाणसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थरासिरूवूणेण पलिदोवमस्स अद्धच्छेदणाओ गुणिय असंखेज्जावलियाणं छेदणापक्खित्तमेत्ता । शंका- उक्त भागहारकी अर्धच्छेद शलाकाएं कितनी हैं ? समाधान - असंख्यात आवलियोंके अर्धच्छेदोंको पल्योपमके अर्धच्छेदोंमें मिला देने पर जितना प्रमाण आवे उतनी उक्त भागहारकी अर्धच्छेद शलाकाएं हैं। उदाहरण-३२ के अर्धच्छेद ५ और ६५५३६ के अर्धच्छेद १६ इन दोनोंका जोड़ २१ होता है । यही ३२४ ६५५३६ के अर्धच्छेद जानना चाहिये। ___ अथवा, असंख्यात आवलियोंसे पल्योपमको गुणित करके जो गुणा की हुई राशि लब्ध आवे उससे प्रतरपल्यको गुणित करके जो राशि लब्ध आवे उसका प्रतरपल्यके उपरिम वर्गमें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, क्योंकि, प्रतरपल्यका प्रतरपल्यके उपरिम वर्गमें भाग देने पर प्रतरपल्य आता है। पुनः पल्योपमका प्रतरपल्यमें भाग देने पर पल्योपम आता है। पुनः असंख्यात आवलियोंका पल्योपममें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है। द्विरूप वर्गधारामें इसप्रकार भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, इसलिये पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया। उदाहरण- ६५५३६' x ६५५३६२ ३२x६५५३६४६५५३६१=२०४८ सा. उक्त भागद्दारके जितने अर्धच्छेद हों, उतनीवार उक्त राशिके अर्धच्छेद करने पर भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि आती है। उदाहरण-३२४ ६५५३६४ ६५५३६२ रूप भागहारके ५३ अर्घच्छेद होते हैं, इसलिये इतनीवार ६५५३६४ ६५५३६ प्रमाण भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी २०४८ आते हैं। शंका-उक्त भागहारकी अर्धच्छेदशलाकाएं कितनी हैं ? समाधान-पल्योपमसे ऊपर दो स्थान आये हैं, इसलिये दोका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकको दोरूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न होवे उसमेंसे एक कमा कर जो शेष रहे उससे पल्योपमके अर्धच्छेदोंको गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें असंख्यात आवलियोंके अर्धच्छेदोंके मिला देने पर उक्त भागहारकी अर्धच्छेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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