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________________ १, २, ६.] दवपमाणाणुगमे सासणसम्माइडिआदिपमाणपरूवणं [७३ जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणि पढमवग्गमूलाणि आगच्छति । तदियवग्गमूलेण पलिदोवमे भागे हिदे विदियतदियवग्गमूलाणि अण्णोण्णभत्थे कए तत्थ जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणि पढमवग्गमूलाणि आगच्छति । एदेण कमेण असंखे जाणि वग्गट्ठाणाणि हेट्ठा ओसरिऊण द्विदअसंखेज्जावलियाहि पलिदोवमे भागे हिदे असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि आगच्छंति त्ति ण संदेहो । कारणं गदं । तस्स का णिरुत्ती ? असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमपढमवग्गमूले भागे हिदे तत्थ जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणि पढमवग्गमूलाणि । अधवा असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमविदियवग्गमूले भागे हिदे जं भागलद्धं तेण विदियवग्गमूलं गुणिदे तत्थ जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । अधवा असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमतदियवग्गमूले भागे हिदे जं भागलळू तेण तदियवग्गमूलं गुणेऊण तेण गुणिदरासिणा विदियवग्गमूलं गुणेऊण तत्थ जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणि पढमवग्गमूलाणि आगच्छंति । एदेण कमेण असंखेज्जाणि वग्गहाणाणि हेट्ठा ओसरिऊण असंखेज्जावलियाहि पदरावलियाए भागे हिदाए जं प्रमाण हो उतने प्रथम वर्गमूल लब्ध आते है। पल्योपमके तीसरे वर्गमूलका पल्योपममें भाग देने पर दूसरे और तीसरे वर्गमूलके प्रमाणका परस्पर गुणा करनेसे जो प्रमाण आवे उतने प्रथम वर्गमूल लब्ध आते हैं। इस क्रमसे असंख्यात वर्गस्थान नीचे जाकर जो असंख्यात आवलियां स्थित हैं उनका पल्योपममें भाग देने पर असंख्यात प्रथम वर्गमूल आते हैं। इसमें संदेह नहीं है । इसप्रकार कारणका वर्णन समाप्त हुआ। उदाहरण-पल्यके प्रथम वर्गमूल २५६ का ६५५३६ में भाग देने पर २५६ लब्ध आते हैं। दूसरे वर्गमूल १६ का ६५५३६ में भाग देने पर दूसरे वर्गमूल १६ वार २५६ अर्थात् ४०९६ लब्ध आते हैं। तीसरे वर्गमूल ४ का ६५५३६ में भाग देने पर, दूसरे वर्गमूल १६ और तीसरे वर्गमूल ४ को परस्पर गुणा करनेसे जो ६४ लब्ध आते हैं, उतने अर्थात् ६४ वार प्रथम वर्गमूल २५६ अर्थात् १६३८४ लब्ध आते हैं। इसीप्रकार उत्तरोत्तर नीचे जाने पर असंख्यात प्रथम वर्गमूल लब्ध आवेंगे इसमें कोई संदेह नहीं। शंका- असंख्यात प्रथम वर्गमूल आते हैं, इसकी निरुक्ति क्या है ? समाधान -- असंख्यात आवलियोंका पल्योपमके प्रथम वर्गमूलमें भाग देने पर जो प्रमाण आवे उतने प्रथम वर्गमूल होते हैं । अथवा, असंख्यात आवलियोंका पल्योपमके द्वितीय वर्गमूलमें भाग देने पर जो लब्ध आवे उससे द्वितीय वर्गमूलको गुणित कर देने पर जितना प्रमाण आव उतने पल्यापमके प्रथम वर्गमूल होते हैं। अथवा, असंख्यात आवलियोका पल्यापमके तीसरे वर्गमूलमें भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उससे तीसरे वर्गमूलको गुणित करके उस गणित राशिसे दसरे वर्गमलको गणित करके वहां जितना प्रमाण आवे उतने प्रथम वर्गमल होते हैं। इसी क्रमसे असंख्यात वर्गस्थान नीचे जाकर असंख्यात आवलियोंका प्रतरावली में भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उससे प्रतरावलीको गुणित करके, उस गुणित राशिसे प्रतरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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