SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ ] छक्वंडागमे जीवाणं [१, २, ६. भागलद्धं तेण पदरावलियं गुणेऊण तेण गुणिदरासिणा तदुवरिमवग्गं गुणेऊण एवमुवरि. मुवरिमवग्गट्ठाणाणि विदियवग्गमूलंताणि णिरंतरं सवाणि गुणिदे तत्थ जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणि पढमवग्गमूलाणि हवंति त्ति । णिरुत्ती गदा । वियप्पो दुविहो, हेट्ठिमवियप्पो उबरिमवियप्पो चेदि । तत्थ वेरूवे हेडिमवियप्पं वत्तइस्सामो । असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमपढमवग्गभूले भागे हिदे जं भागलद्धं तेण, पलिदोवमपढमवग्गमूले गुणिदे सासण सम्माइट्ठिरासी होदि । अधवा अवहारकालेण पलिदोवमविदियवग्गमूले भागे हिदे जं भागलढू तेग विदियवग्गमूलं गुणेऊण तेण गुणिदरासिणा पढमवग्गमूले गुणिदे सासणसम्माइहिरासी होदि । अधवा अवहारकालेण पलिदोवमतदियवग्गमूले भागे हिदे जं भागलद्धं तेण तदियवग्गमूलं गुणेऊण तेण गुणिदरासिणा विदियवग्गमूलं गुणेऊग पुणो वि तेण गुणिदरासिणा पढमवग्गमूलं गुणिदे वलीके उपरिम वर्गको गुणित करके, इसप्रकार द्वितीय वर्गमूलपर्यंत सर्व उपरिम उपरिम वर्गस्थानोंको निरंतर गुणित करने पर वहां जितना प्रमाण आवे उतने प्रथम वर्गमूल होते हैं। इसप्रकार निरुक्तिका कथन समाप्त हुआ। उदाहरण-असंख्यात आवलीप्रमाण ३२ का भाग पल्यके प्रथम वर्गमूल २५६ में देने पर ८ लब्ध आते हैं। इसप्रकार सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि २०४८ में ८ ही प्रथम वर्गमूल होते हैं। द्वितीय वर्गमूल १६ में ३२ का भाग देने पर ३ लब्ध आता है। इसका द्वितीय वर्गमूलसे गुणा करने पर ८ लब्ध आते हैं। तृतीय वर्गमूल ४ में ३२ का भाग देने पर लब्ध आता है । इसका, दूसरे १६ और तीसरे ४ वर्गमूलके परस्पर गुणनफल ६४ से, गुणा कर देने पर ८ लब्ध आते हैं । इसप्रकार सर्वत्र समझ लेना चाहिये। विकल्प दो प्रकारका है, अधस्तनविकल्प और उपरिमविकल्प । उन दोनों में से पहले द्विरूपवर्गधारामें अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं असंख्यात आवलियोंसे पल्योपमके प्रथम वर्गमूलको गुणित करने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि होती है। उदाहरण-पल्योपम ६५५३६ का प्र. वर्गमूल २५६; असंख्यात आवलियां ८. २५६४८% २०४८ सा. अथवा, अवहारकालका पल्योपमके द्वितीय वर्गमूलमें भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उससे द्वितीय वर्गमूलको गुणित करके उस गुणित राशिसे प्रथम वर्गमूलके गुणित करने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि होती है। उदाहरण—६५५३६ का द्वितीय वर्गमूल १६, अवहारकाल ३२; १६ : ३२ = ३, १६ ४ ३ = ८, २५६४८ = २०४८ सा. अथवा, अवहारकालका पल्योपमके तृतीय वर्गमूलमें भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उससे तृतीय वर्गमूलको गुणित करके उस गुणित राशिसे द्वितीय वर्गमूलको गुणित करके फिर भी उस गुणित राशिसे प्रथम वर्गमूलके गुणित करने पर सासादनसम्यग्दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy