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________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, २, ६. ७२ ] पलिदोवमम्हि सासणसम्माइडिरासिपमाणं अवणिज्जदि, अवहारकालादो एगरूवमवजिदिः पुणेो वि सासणसम्माइडिरासिपमाणं पलिदोवमम्हि अवणिजदि, अवहारकालादो एगरुवमवणिजदि । एवं पुणो पुणो कीरमाणे पलिदोवमो अवहारकालो च जुगवं णिहिदो । तत्थ एगवारमवहिदपमाणं सासणसम्माइट्टिरासी होदि । अवहिदं गदं । तस्स पमाणं पलिदोपमस्स असंखेज्जदिभागो असंखेजाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि ति पमाणं गदं । केण कारण ? पलिदोवमपढमवग्ग मूलेण पलिदोवमे भागे हिदे पलिदोवमपढमवग्गमूलमागच्छदि । तस्सेव विदियवग्गमूलादो पलिदोवमे भागे हिदे विदियवग्गमूलस्स सासादन सम्यग्दृष्टि जीवराशिके प्रमाणको घटा देना चाहिये । पल्योपममेंसे सासादन सम्यग्दृष्टि जीवराशिको एकवार कम किया, इसलिये अवहारकालरूप शलाकाराशिमेंसे एक कम कर देना चाहिये । फिर भी पल्योपममें से सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिके प्रमाणको घटा देना चाहिये | दूसरीवार यह क्रिया हुई, इसलिये अवहारकालरूप शलाका राशिमेंसे एक और कम कर देना चाहिये । इसप्रकार पुनः पुनः करने पर पल्योपम और अवहारकाल एक साथ समाप्त हो जाते हैं । इस क्रियामें एकवार जितनी राशि घटाई जावे उतना सासादन सम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण है । इसप्रकार अपहृतका कथन समाप्त हुआ । उदाहरण - शलाका राशि ३२ पल्योपम ६५५३६ १ ३१ १ २०४८ ६३४८८ २०४८ ६१४४० इस क्रम से पल्योपममें से २०४८ और शलाकारूप भागहार मेंसे एक एक कम करते जाने पर दोनों ३० राशियां एक साथ समाप्त होती हैं । इनमेंसे एकवार घटाई जानेवाली संख्या २०४८ प्रमाण सासादनसम्यग्दृष्टि हैं । उस सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। इसप्रकार प्रमाणका वर्णन समाप्त हुआ । उदाहरण - पल्योपम ६५५३६ का प्रथम वर्गमूल २५६ है और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण २०४८ है । २५६ का २०४८ में भाग देने पर ८ आते हैं । इस ८ संख्याको असंख्यातरूप मान लेने पर यह सिद्ध हो जाता है कि पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूल प्रमाण सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि होती है । शंका- किस कारणसे पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण सासादनसम्यदृष्टि जीवराशि आती है ? समाधान - पल्योपमके प्रथम वर्गमूलका पल्योपममें भाग देने पर पल्योपमका प्रथम वर्गमूल आता है । उसीके दूसरे वर्गमूलका पल्योपममें भाग देने पर दूसरे वर्गमूलका जितना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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