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१, २, ६. ]
दव्यपमाणानुगमे सासणसम्माइट्ठिआदिपमाणपरूवणं
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भागहारमा तमुत्तमिदि सासणसम्माइट्ठिआदिरासिपमाणविसयणिण्णयुप्पायणटुं परूविदं । तं च अंतमुत्तमणेयवियष्पं तदो एत्तियमिदि ण जाणिज्जदि । तत्थ णिच्छयजणणणिमित्तं किंचि अद्धापरूवणं कस्सामो । तं कथं ? असंखेज्जे समए घेत्तूण एया आवलिया हवदि । तप्पा ओग्गसंखेज्जावलियाओ घेत्तूण एगो उस्सासो हवदि । सत्त उसासे घेतू एगो थोवो हवदि । सत्त थोवे घेतूण एगो लवो हवदि । अठतीस लवे अद्धलवं च घेत्तूण एगा णालिया हवदि । उत्तं च
उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियोंके हो जाने पर भी मिथ्यादृष्टि जीवराशि समाप्त नहीं हो सकती है । परंतु सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों के संबन्धमें इन दोनों प्रश्नों में से कोई प्रश्न उपस्थित नहीं होता है, क्योंकि, वे केवल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अतः उनकी लोकाकाशमें अवस्थिति कैसे होगी, यह बात नहीं कही जा सकती है । और सासादनसम्यग्दृष्टि जीव, यद्यपि मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त होते रहते हैं इसलिये उनका व्यय होता है, फिर भी उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमैसे उसी अनुपात से सासादन गुणस्थानको भी प्राप्त होते रहते हैं, अतएव व्ययके समान आय भी निरंतर चालू है । इसलिये उनका अभाव हो जायगा, यह भी नहीं कहा जा सकता है। इसप्रकार क्षेत्र और कालप्रमाणकी अपेक्षा सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका प्रमाण कहने के लिये कोई कारण नहीं होनेसे उक्त प्रमाणोंके द्वारा सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका कथन नहीं किया ।
आवलि असंखसमया संखेज्जावलिसमूह उस्सासो । सत्तासो थोवो सत्तत्थोवा लवो एक्को' ॥ ३३ ॥ )
सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवराशिका प्रमाण कहते समय भागहारका प्रमाण जो अन्तर्मुहूर्त कहा है वह सासादनसम्यग्दृष्टि आदि राशियोंके प्रमाण विषयक निर्णय के उत्पन्न करनेके लिये कहा है । परंतु वह अन्तर्मुहूर्त अनेक प्रकारका है, इसलिये प्रकृतमें इतना अन्तर्मुहूर्त विवक्षित है, यह नहीं जाना जाता है । इसलिये विवक्षित अन्तर्मुहूर्त के विषय में निश्चय उत्पन्न करनेके लिये थोड़ेमें कालका प्ररूपण करते हैं ।
शंका- वह कालप्ररूपणा किसप्रकार है ?
समाधान - असंख्यात समयकी एक आवली होती है । ऐसी तद्योग्य संख्यात आवलियोंका एक उच्छ्वास होता है । सात उच्छ्वासोंका एक स्तोक होता है । सात स्तोकोंका एक लव होता है, और साढे अड़तीस लवोंकी एक नाली होती है । कहा भी है
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असंख्यात समयोंकी एक आवली होती है। संख्यात आवलियोंके समूहको एक उच्छ्वास कहते हैं। सात उच्छ्वासोंका एक स्तोक होता है और सात स्तोकोंका एक लव होता है ॥ ३३ ॥
१ गो. जी. ५७४.
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