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________________ १, २, ५. ] दवमाणागमे मिच्छाइट्ठिपमाणपरूवणं [ ५७ छेदणया भवंति । सव्वत्थ दुगुणादिकरणं पिवत्तन्वं । तदो वेरूवधारापरूवणा समता भवदि । अवधारा गहिदं वत्तहस्सामा । ध्रुवरासिणा सव्वजीवरासिउवरिमवग्गस्सुवरिमवगं गुणेऊण तेण arraftaarगे भागे हिदे मिच्छाइट्ठिरासी आगच्छदि । केण कारणेण ? सव्वजीवरासिउवरिमवग्गस्तुवरिमवग्गेण घणउवरिमवग्गे मागे हिदे सव्वजीवरासिउवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो वि धुत्ररासिणा सब्वजीवरासिउवरिमवग्गे भागे हिदे मिच्छाइट्टिरासी आगच्छदि । एवमागच्छदि त्ति कट्टु गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेते रासिस्स अद्धच्छेद कदे विमिच्छाइट्ठरासी चेत्र अवचिदे | तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणया केत्तिया ? एगरूवं विरलिय विगं करिय अण्णोष्णन्भत्थरासिणा तिगुण' पर भागदार राशिके अर्धच्छेद होते हैं । सर्वत्र द्विगुणादिकरणका भी कथन करना चाहिये । तब जाकर द्विरूप वर्गधाराका प्ररूपण समाप्त होता है । अब अष्टरूपधारा अर्थात् घनधारामें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैंध्रुवराशिके द्वारा संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका जीवराशिके घनके उपरिम वर्ग में भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि आ जाती है, क्योंकि, संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गका जीवराशिके धनके उपरि वर्ग में भाग देने पर संपूर्ण जीवराशिका उपरिम वर्ग आता है । अनन्तर ध्रुवराशिका संपूर्ण जीवराशि उपरिम वर्ग में भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। घनधारामें इसप्रकार मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका प्रहण किया है। १६ १६ २५६ १६७७७२१६ - x x १. १ १३ १३ उदाहरण १६७७७२१६ १ Jain Education International = १६७७७२१६ १३ १३ मिथ्यादृष्टि. उक्त भागद्वारके अर्धच्छेदप्रमाण उक्त राशिके अर्धच्छेद करने पर भी मिथ्याष्टि जीवराशि ही आ जाती है । शंका - उक्त भागहार के अर्धच्छेद कितने हैं ? ÷ , समाधान - एकका विरलन करके और उसे दो रूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि आवे उसे गुणित करके और उसमेंसे एक कम करके जो राशि रहे उससे संपूर्ण १ प्रतिषु ' - रासिण। गुण-' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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