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________________ ५६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, ५. अद्धच्छेदणए कदे मिच्छाइहिरासी आगच्छदि । एदस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयसलागा केत्तिया ? सबजीवरासीदो उवरि दोण्णि वग्गट्ठाणाणि चडिदाणि त्ति दो रूवे विरलिय विगं करिय अण्णोण्णभत्थरासिरूवूणेण गुणिदसव्वजीवरासिअद्धच्छेदणयमेत्ता होऊण अंतिमभागहारेण अधिया भवंति । एवं भागहारस्स तिगच्छेदणए सलागा काऊण तीहि तीहि सरूवेहि रासिम्मि भागे हिदे वि मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि । एवं चउक्कादिछेदणयसलागाहि वि रासिम्हि छिज्जमाणे मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि त्ति परूवेदव्वं । एवं संखेज्जासंखेज्जाणतेसु बग्गट्ठाणेसु उवरि वत्तव्यं । णवरि भागहारच्छेदणाओ संकलिजमाणे एवं संकलेदवाओ। तं जहा, सबजीवरासीदो चडिदद्धाणमेत्तवग्गसलागाओ विरलिय विगं करियण्णोण्णभत्थरासिरूवणेण सव्वजीवरासिच्छेदणए गुणिदे भागहार जीवराशि आती है। शंका-इस भागहारकी अर्धच्छेदशलाकाएं कितनी है? समाधान-संपूर्ण जीवराशिके ऊपर दो वर्गस्थान जाकर वह भागहार उत्पन्न हुआ है, इसलिये दोका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकको दो रूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो संख्या उत्पन्न हो उसमेंसे एक कम करके अवशिष्ट राशिके द्वारा संपूर्ण जीवराशिके अर्धच्छेदोंको गुणित करके जो प्रमाण आवे उसे अन्तिम भागहारसे अधिक करने पर अर्धच्छेदशलाकाएं होती हैं। उदाहरण-२४२-४-१=३४४ = अधिक उक्त भागाहारके कुल अर्धच्छेद होते हैं। इसीप्रकार भागहारके त्रिकच्छेदोंको शलाका करके तीन तीनका राशिमें भाग देने पर भी मिथ्यादृष्टि जीवराशि आ जाती है। इसीप्रकार चतुर्थ आदि छेद शलाकाओंके द्वारा भी राशिके छिन्न करने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है, ऐसा कथन करना चाहिये । उदाहरण-२३ के ६३२९ २१० इसप्रकार २ त्रिकछेद हैं, अतः इतनीवार २५६ में ___३ का भाग देने पर १३ लब्ध आ जाते हैं। इसीप्रकार संख्यात असंख्यात और अनन्त वर्गस्थानोंके ऊपर भी कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि भागहारके अर्धच्छेदोंका संकलन करते समय इसप्रकार संकलन करना चाहिये । आगे उसीका स्पष्टीकरण करते हैं संपूर्ण जीवराशिसे जितने वर्गस्थान ऊपर गये हो उतनी वर्गशलाकाओंका विरलन करके और उस विलित राशिके प्रत्येक एकको दो रूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उसमेंसे एक कम करके शेष राशिसे संपूर्ण जीवराशिके अर्धच्छेदोंको गुणित करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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