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________________ १, २, ५.] दव्वपमाणाणुगमे मिच्छाइट्ठिपमाणपरूवणं [५५ सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि । अधवा धुवरासिअद्धच्छेदणया जदि सधजीवरासिउवरिमवग्गस्स अद्धच्छेदणयसरिसा हवंति तो अद्धद्धेण छिण्णावसिट्टरासिपमाणं मिच्छाइद्विरासिणा एगरूवं खंडिदेगखंडपमाणं होदि । पुणो धुवरासिअद्धच्छेदणए सलागा काऊण सधजीवरासिउवरिमवग्गे अद्धद्धेण छिण्णे एगरूत्रमागच्छदि । पुणो तमेगरूवं मिच्छाइट्ठिरासिभजिदेगरूवेण भागे हिदे मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि त्ति। अधवा धुवरासिणा सव्वजीवरासिस्सुवरिमवग्गं गुणेऊण तदुवरिमवग्गे भागे हिदे मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि त्ति । केण कारणेण ? सव्वजीवरासिउवरिमवग्गेण तदुवरिमवग्गे भागे हिदे सव्वजीवरासिस्स उवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो धुवरासिणा साजीवरासिउवरिमवग्गे भागे हिदे मिच्छाइहिरासी आगच्छदि त्ति । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स १६ का जीवराशिके प्रमाण १६ में भाग देने पर १३ मिथ्यादृष्टिका प्रमाण लब्ध आता है। ___ अथवा, ध्रुवराशिके अर्धच्छेद यदि संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गके अर्धच्छेदोंके समान होते हैं तो उत्तरोत्तर अर्धाधरूपसे छिन्न करनेके अनन्तर अवशिष्ट रही राशिका प्रमाण, मिथ्यादृष्टि जीवराशिसे एक रूपको खंडित करके जो एक भाग आता है, उतना होता है। अमन्तर ध्रुवराशिके अर्धच्छेदोंको शलाकारूपसे स्थापित करके संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गको अर्धार्धरूपसे छिन्न करने पर एक आता है। अनन्तर उस एकको मिथ्यादृष्टि जीवराशिके प्रमाणसे भक्त एकके द्वारा भाजित करने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि आ जाती है। उदाहरण-१६ के उपरिम वर्ग २५६ के अर्धच्छेद ८ के बराबर धुवराशि १९६२ के अर्धच्छेद करने पर आठवां अर्धच्छेद १३ होता है जो १ में मिथ्यादृष्टिके प्रमाण १३ के भाग देने पर जो लब्ध आता है उतनेके बराबर है। पुनः इन ८ अर्धच्छेदोंको शलाका करके २५६ के इतनी बार अर्धच्छेद करने पर १ आता है। पुनः इस १ में १३ का भाग देने पर १३ लब्ध आते हैं, यही मिथ्यादृष्टिराशि है। ___अथवा, ध्रुवराशिके द्वारा संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका उसके उपरिम वर्गमें (जीवराशिके उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें) भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि आ जाती है, क्योंकि, संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गका उसके उपरिम वर्गमें भाग देने पर संपूर्ण जीवराशिका उपरिम वर्ग आता है। पुनः ध्रुवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है। उदाहरण-सर्व जीवराशिका उपरिम वर्ग २५६; सर्व जीवराशिके उपरिम वर्ग २५६ का उपरिम वर्ग ६५५३६, २५६.२५६ ६५५३६, ६५५३६ . ६५५३६.१३ १३ १ १३ १ १३ = १३ उक्त भागहारके अर्धच्छेदप्रमाण उक्त राशिके अर्धच्छेद करने पर भी मिथ्याहाष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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