SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, २, ५. उवरिमवियप्पो तिविहो, गहिदो गहिदगहिदो गहिदगुणगारो चेदि । तत्थ गहिदं वत्तस्समो | धुवरासिणा सव्वजीवरासिउवरिमवग्गे भागे हिदे किमागच्छदि ? मिच्छाइसी आगच्छदि । तस्स भागदारस्स अद्धच्छेदणयमेत्तवारं रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे मिच्छाद्विरासी चेत्र अवचिट्ठदे । केण कारणेण ? धुव सिस्स अद्धच्छेद्दणयसलागा जदि सव्वजीवरासिअद्धच्छेदणयसलागाहि सरिसा त्ति घेष्वंति तो घुवरासिं अद्धद्वेण छिदिऊणुव्वराविद सिपमाणं सव्यजीवरासिं मिच्छाइडिरासिणा खंडिदपमार्ग होदि । एवं होदिति काऊण सच्चजीवरासि अद्धच्छेदणयं सलागभूदं द्ववेऊग सव्यजीव रासि उपरिमवग्गे अद्वच्छेदेण छिष्णे सव्त्रजीवरासी आगच्छदि । पुणे मिच्छाइद्विरासि गोवहिद सव्वजीवरासिणा उवरिम ५४ ] उपरिम विकल्प तीन प्रकारका है, गृहीत, गृहतिगृहीत और गृहीत गुणकार | उनमें से पहले गृहीत उपरिम विकल्पको दिखलाते हैं शंका - ध्रुवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्ग में भाग देने पर कौनसी राशि आती है ? समाधान - मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है ( २५६ : २ = १३ )। ध्रुवराशिप्रमाण भागद्दार के जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार जीवराशिके उपरिमवर्गरूप राशि अर्धच्छेद करने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि ही आ जाती है । उदाहरण - ध्रुवराशि १९ है । इसमें से १६ के अर्धच्छेद ४ होते हैं। शेष ३३ के चौथे अर्धच्छेद पर अधिक रहता है, इसलिये १९ के अधिक ४ अर्धच्छेद हुए । अतएव जीवराशि १६ के वर्ग २५६ के इतनीवार अर्थात् ४ + वार अर्धच्छेद करने पर १३ आ जाते हैं । १ उ १ उ शंका- भागहार राशिके अर्धच्छेदप्रमाण जीवराशिके उपरिम वर्ग के अर्धच्छेद करने पर मिथ्यादृष्टि राशि किस कारण से आती है ? ध्रुवराशिकी अर्धच्छेदशलाकाएं संपूर्ण जीवराशिकी अर्ध-छेदशलाकाओं के बराबर होती हैं, यदि ऐसा ग्रहण कर लिया जाता है तो ध्रुवराशिको अर्धार्धरूपसे छिन्न करके शेष रही हुई राशिका प्रमाण, संपूर्ण जीवराशिको मिथ्यादृष्टि राशिसे खण्डित करने पर जो लब्ध आता है, उतना होता है ( १६ ÷ १३ = १२३ ) । इसप्रकार होता है, इसलिये संपूर्ण जीवराशिके अर्धच्छेदोंको शलाकारूपसे स्थापित करके संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गको अर्धच्छेदोंके बराबर छिन्न करने पर संपूर्ण जीवराशिका प्रमाण आ जाता है । अनन्तर मिथ्यादृष्टि जीवराशिके द्वारा उद्धर्तित संपूर्ण जीवराशिके प्रमाणसे ऊपर उत्पन्न की हुई संपूर्ण जीवराशिमें भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि आती है । उदाहरण - जीवराशि १६ के अर्धच्छेद ४ के बराबर जीवराशि के वर्ग २५६ के अर्धच्छेद करने पर १६ लब्ध आते हैं। अनन्तर मिथ्यादृष्टिके प्रमाणसे भाजित जीवराशिके प्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy