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________________ १, २, ५ ] दवमाणागमे मिच्छाइट्ठिपमाणपरूवणं [ ५३ विहाणेण गुणगारो वढावेदव्वो जाव ध्रुवरासिपमाणं पत्तो त्ति । पुणो ध्रुवरासिगुणिदसव्वजीवरासिणा सव्वजीवरासिघणे ओवहिदे सव्वजीवरासिउवरिमवग्गस्स ध्रुवरासिभागो आगच्छदि सो चेव मिच्छाइडिरासी । एदेण कारणेण ध्रुवरासिणा सव्वजीवरासिं गुणेऊण सव्जीवसिघणे ओट्टिदे मिच्छाइट्टिरासी आगच्छदित्ति । घणघणे वत्तस्साम । ध्रुवरासिणा सव्वजीवरासिं गुणेऊण तेण घणपढमवग्गमूलं गुणेऊण घणघणपढमवग्गमूले ओवट्टिदे मिच्छाइट्ठिरासी आगच्छदि । केण कारण ? घणपढमवगमूले घणाघणपढमवग्गमूले ओवट्टिदे सव्वजीवरासिस्स घणो आगच्छदि । पुणो वि सव्वजीवरासिणा सव्वजीवरासिघणे ओवहिदे सव्त्रजीवरासिउवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो वि ध्रुवरासिणा सव्वजीवरासिउवरिमवग्गे भागे हिदे मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि । एवमागच्छदित्ति कट्टु गुणेऊण भागग्गहणं कदं । एत्थ दुगुणादिकरणे कदे वियप समप्पदि । १९६३ प्राप्त नहीं हो जाता है तबतक गुणकारको बढ़ाते जाना चाहिये । पुनः ध्रुवराशिसे संपूर्ण जीवराशिको गुणित करने पर जो लब्ध आवे उससे संपूर्ण जीवराशि के घनके अपवर्तित करने पर, संपूर्ण जीवराशिके उपरिमवर्ग में ध्रुवराशिका भाग देने पर जो लब्ध आवे, तत्प्रमाण भाग आता है, और वही मिध्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण है । इसी कारणले यह कहा कि ध्रुवराशिसे संपूर्ण जीवराशिको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे संपूर्ण जीवराशिके घनके अपवर्तित करने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है । उदाहरण - x २ = १३६ ४९६ : ४६ = ४०९६६ = १३ मि. अब घनाघनमें अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं । ध्रुवराशिसे संपूर्ण जीवराशिको गुणित करके जो गुणनफल आवे उससे जीवराशिके घनके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो गुणनफल आवे उसके द्वारा घनाघनके प्रथम वर्गमूलको उद्वर्तित करने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, क्योंकि, घनके प्रथम वर्गमूलसे घनाघनके प्रथम वर्गमूलको उद्वर्तित करने पर संपूर्ण जीवराशिका घन आता है । अनन्तर संपूर्ण जीवर शिसे संपूर्ण जीवराशिके घनके अपवर्तित करने पर संपूर्ण जीवराशिका उपरिम वर्ग आता है । अनन्तर ध्रुवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्ग में भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है । घनाघनधारा में इसप्रकार जीवराशिका प्रमाण आता है, ऐसा समझ कर पहले गुणा करके, अनन्तर, भागका ग्रहण किया है । यहां पर द्विगुणादिकरणके कर लेने पर अधस्तन विकल्प समाप्त हो जाता है । उदाहरण - १६ के घनका प्रथम वर्गमूल ६४, घनाघनका प्रथम वर्गमूल २६२१४४, १९१३ × १६ × ६४ = २६२१४४ २६२१४४ १ १३ = १३ मि. Jain Education International २६२१४४ १३ For Private & Personal Use Only ÷ www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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