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१, २, ४.] दव्वपमाणाणुगमे मिच्छाइहिपमाणपरूवणं अहिएण होदव्यं । होतो वि असंखेज्जभागभहिओ संखेज्जभागभहिओ वा ण होदि, तदणुग्गहकारिसुत्ताणुवलंभादो। तदो दीवसमुद्दरुद्धखेतायामादो संखेज्जगुणेण बाहिरखेत्तेण होदव्यमण्णहा पुव्वुत्तसुत्तेहि सह विरोहप्पसंगादो। 'जो मच्छो जोयणसहस्सिओ सयंभूरमणसमुदस्स बाहिरिल्लए तडे वेयणसमुग्घाएण समुहदो काउलेस्सियाए लग्गों' सि एदेण वेयणासुत्तेण सह विरोहो किण्ण होदि त्ति भणिदे ण, सयंभूरमणसमुद्दस्स बाहिरवेदियादो परभागद्विदपुढवीए बाहिरिल्लतडत्तणेण गहणादो। तो वि काउलेस्सियाए महामच्छो ण लग्गदि त्ति णासंकणिज्ज, पुढविहिदपदेसम्हि चेव हेट्ठा वादवलयाणम
रज्जुके प्रमाणके अन्तमें बतलाये हुए आठ शुन्योंके नष्ट करनेके लिये जो कुछ भी राशि हो वह आधिक ही होना चाहिये । अधिक होती हुई भी वह राशि असंख्यातवांभाग अधिक अथवा संख्यातवांभाग अधिक तो हो नहीं सकती है, क्योंकि, इसप्रकारके कथनकी पुष्टि करनेवाला कोई सूत्र नहीं पाया जाता है। इसलिये जितने क्षेत्र विस्तारको द्वीपों और समुद्रोंने रोक रक्खा है उससे संख्यातगुणा बाहिरी अर्थात् अन्तके समुद्रसे उस ओरका क्षेत्र होना चाहिये, अन्यथा पहले कहे गये सूत्रोंके साथ विरोधका प्रसंग आ जायगा।
'जो एक हजार योजनका महामत्स्य है वह वेदनासमुद्धातस पीडित हुआ स्वयंभूरमण समुद्रके बाह्य तट पर कापोतलेश्या अर्थात् तनुवातवलयसे लगता है, इस वेदनाखंडके सूत्रके साथ पूर्वोक्त व्याख्यान विरोधको क्यों नहीं प्राप्त होता है ऐसा किसीके पूछने पर आचार्य कहते हैं कि फिर भी इस कथनका पूर्वोक्त कथनके साथ विरोध नहीं आता है, क्योंकि, यहां पर 'बाहा तट' इस पदसे स्वयंभूरमण समुद्रकी बाह्य वेदिकाके परभागमें स्थित पृथिवीका ग्रहण किया गया है।
शंका-यदि ऐसा है तो महामत्स्य कापोतलेश्यासे संसक्त नहीं हो सकता है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि, पृथिवीस्थित प्रदेशोंमें अध. स्तन वातवलयका अवस्थान रहता ही है।
विशेषार्थ---यहां ऐसा अभिप्राय जानना चाहिये कि समुद्रकी वेदिका और
१रूवाहियदीवसागररूवाणि विरलिय विग करिय अण्णोण्णब्भत्थं कादण तत्थ तिणि रूवाणि अवणिय जोयणलक्खेण गुणिदे दीवसमुद्दरुद्धतिरियलोगखेत्तायामुप्पत्तीदो। ण च एत्तियो चेव तिरियलोगविक्खंभो जगसेढीए सत्तमभागम्मि पंचसुण्णाणुवलंभादो। ण च एदम्हादो रज्जुविक्खंभो ऊणो होदि रज्जुअब्भंतरभूदस्स चउव्वीसजोयणमेत्तवादरुद्धक्खेत्तरस वज्झामुवलंभादो। ण च तेत्तियमेवं पक्खित्ते पंचसुण्णओ फिदृति तहाणुवलंभादो। तम्हा सबलदीव. सायरविवस्वादो बाहि केत्तिएण वि खेतेण होदव्वं । धवला. ८८१.ति. प. प. २२५.
२ जो मच्छो जोयणसहस्सओ सयंभुरमणसमुदस्स बाहिरिलए तड अच्छिदो ॥ ८॥ वेयणसमुग्धादेण समुहदो॥ ८॥ काउलेस्सियाए लग्गो, काउलेस्सिया णाम तदियो वादवलओ ॥ ९॥ सू. धवला. पत्र ८८१-८८२
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