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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, ३. तेण कारणेण मिच्छाइहिरासी ण अवहिरिज्जदि, सव्वे समया अवहिरिज्जति । अदीदकालो थोवो मिच्छाइट्टिरासी बहुगो त्ति कधं णव्वदे ? सोलस-पडिय-अप्पाबहुगादो । कधं सोलसपडिय-अप्पाबहुगं ? सव्वत्थावा वट्टमाणद्धा, अभवसिद्धिया अणंतगुणा। को गुणगारो ? जहण्णजुत्ताणतं । सिद्धकालो अणंतगुणो । को गुणगारो ? छम्मासट्टमभागेण रूवाहिएण छिण्ण-अदीदकालस्स अणंतिम भागो। अणाइस्म अदीद. कालस्स कधं पमाणं ठविज्जदि ? ण, अण्णहा तस्साभावपसंगादो। ण च अणादि त्ति जाणिदे सादित्तं पावेदि, विरोहा । सिद्धा संखेज्जगुणा । को गुणगारो ? रूवसदपुधत्तं । असिद्धकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? संखेज्जावलियाओ। अदीदकालो विसेसाहिओ। केत्तियमेत्तेण ? सिद्धकालमत्तेण । भवसिद्धिया मिच्छाइट्ठी अणंतगुणा । को
इसलिये मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण समाप्त नहीं होता है, परंतु अतीतकालके संपूर्ण समय समाप्त हो जाते हैं।
शंका-अतीतकाल स्तोक है और मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण उससे अधिक है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- सोलह राशिगत अल्पबहुत्वसे यह जाना जाता है कि अतीतकालसे मिथ्याष्टि जीवराशिका प्रमाण आधिक है।
शंका-सोलह राशिगत अल्पबहुत्व कि.सप्रकार है ?
समाधान-वर्तमानकाल सबसे स्तोक है । अभव्य जीवोंका प्रमाण उससे अनन्तगुणा है। यहां पर गुणकार क्या है ? जघन्य युक्तानन्त यहां पर गुणकाररूपसे अभीष्ट है। अभव्यराशिसे सिद्धकाल अनन्तगुणा है। गुणकार क्या है ? छह महीनोके अष्टम भागमें एक मिला देने पर जो समयसंख्या आवे उससे भक्त अतीतकालका अनन्तवां भाग गुणकार है।
शंका- अतीतकाल अनादि है, इसलिये उसका प्रमाण कैसे स्थापित किया जा सकता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, यदि उसका प्रमाण नहीं माना जाय तो उसके अभावका प्रसंग आ जायगा। परंतु उसके अनादित्वका ज्ञान हो जाता है, इसलिये उसे सादित्वकी प्राप्ति हो जायगी, सो बात भी नहीं है, क्योंकि, ऐसा मानने में विरोध आता है।
सिद्धकालसे सिद्ध संख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? यहां पर शतप्रथक्त्वरूप गुणकार लेना चाहिये। सिद्ध जीवोंसे असिद्धकाल असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? यहां पर संख्यात आवलिकाएं गुणकार हैं। असिद्धकालसे अतीतकाल विशेष अधिक है। कितना विशेष अधिक है ? सिद्धकालका जितना प्रमाण है, उतने विशेषसे अधिक है । अर्थात्
१ क. आ. प्रत्योः
दस ' इति पाठः।
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