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________________ १. २, ३.] दवपमाणाणुगमे मिच्छाइहिपमाणपरूवणं [ ३१ गुणगारो ? भवसिद्धियमिच्छाइट्ठीणमपंतिमभागो । भवसिद्धिया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? तेरसगुणट्ठाणमत्तेण । मिच्छाइट्ठी विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? तेरसगुणहाणमेत्तेण पमाणेणूण-अभवसिद्धियमेत्तेण । संसारत्था विसेसाहिया। केत्तियमेत्तेण ? तेरमगुणहाणमेत्तेण । सव्वे जीवा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? सिद्धजीवमेत्तेण । पोग्गलदव्यमणंतगुणं । को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो । एसद्धा अणंतगुणा । को गुणगारो ? सव्यपोग्गलदव्वादो अणंतगुणो । सबद्धा विसेसाहिया। केत्तियमेत्तेण ? वट्टमाणातीदकालमत्तेण । अलोगागासमणतगुणं । को गुणगारो ? सबकालादो अणंतगुणो । सव्यागासं विसेसाहियं । केत्तियमेतेण ? लोगागासपदेसमेत्तेण । जेण अदीदकालादो मिच्छाइट्ठी अणंतगुणा तेण सव्वे समया अवहिरिजंति मिच्छाइहिरासी ण अवहिरिज्जदि असिद्धकालमें सिद्धकालका प्रमाण मिला देने पर अतीतकालका प्रमाण हो जाता है । अतीतकालसे भव्य मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? भव्य मिथ्यादृष्टियोंका अनन्तवां भाग गुणकार है। भव्य मिथ्यादृष्टियोंसे भव्य जीव विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं ? सासादन गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थानतक जीवोंका जितना प्रमाण है उतने विशेषरूप अधिक हैं। अर्थात् भव्य मिथ्यादृष्टियोंके प्रमाण में सासादन आदि तेरह गुणस्थानवी जीवोंके प्रमाणके मिला देने पर समस्त भव्य जीवोंका प्रमाण होता है । भव्य जीवोंसे सामान्य मिथ्यादृष्टि जीव विशेष अधिक हैं। कितने विशेषरूप अधिक है ? अभव्य राशिसे सासादन आदि तेरह गुणस्थानवी जीवोंके प्रमाणको कम कर देने पर जो राशि अवशिष्ट रहे उतने विशेषसे अधिक है। अर्थात् भव्यराशिमेंसे सासादन आदि तेरह गुणस्थानवालोंका प्रमाण कम करके अभव्यराशिको मिला देने पर सामान्य मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण होता है । सामान्य मिथ्यादृष्टियोंसे संसारी जीव विशेष अधिक है। कितने अधिक हैं ? सासादन आदि तेरह गुणस्थानवी जीवोंका जितना प्रमाण है उतने विशेषसे अधिक हैं । संसारी जीवोंसे संपूर्ण जीव विशेष अधिक हैं ? कितने अधिक हैं ? सिद्ध जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक है। संपूर्ण जीवराशिसे पुद्गलद्रव्य अनन्तगुणा है। यहां पर गुणकार क्या है ? यहां पर संपूर्ण जीवराशिसे अनन्तगुणा गुणकार है। पुद्गलद्रव्यसे अनागतकाल अनन्तगुणा है। यहां पर गुणकार क्या है ? यहां पर संपूर्ण पुद्गलद्रव्यसे अनन्तगुणा गुणकार है। अनागतकालसे संपूर्ण काल विशेष अधिक है। कितना अधिक है ? वर्तमान और अतीतकालमात्र विशेषसे अधिक है। संपूर्ण कालसे अलोकाकाश अनन्तगणा है। यहां पर गुणकार क्या है ? संपूर्ण कालसे अनन्तगुणा यहां पर गुणकार है। अलोकाकाशसे संपूर्ण आकाश विशेष अधिक है। कितना अधिक है ? लोकाकाशके जितने प्रदेश हैं उतना विशेषरूप अधिक है। इसप्रकार इस अल्पबहुत्वसे यह प्रतीत हो जाता है कि अतीतकालसे मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं, अतः अतीतकालके संपूर्ण समय अपहृत हो जाते हैं, परंतु मिथ्यादृष्टि जीवराशि भपहत नहीं होती है, यह बात सिद्ध हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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