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१, २, ३. ] दव्यपमाणाणुगमे मिच्छाइहिपमाणपरूवणं
[२९ (धम्माधम्मागासा तिण्णि वि तुल्लाणि होति थोवाणि ।
बडीदु जीवपोग्गलकालागासा अणंतगुणा ॥ १९ ॥) ण एस दोसो, अदीदकालगहणादो । जहा सव्ये लोए पत्थो तिहा विहत्तो, अणागदो वट्टमाणो अदीदो चेदि । तत्थ अणिप्फण्णो अणागदो णाम । घडिज्जमाणो वट्टमाणो । णिफण्णो ववहारजोग्गो अदीदो णाम । तत्थ अदीदेण पत्थेण मिणिज्जते सव्यबीजाणि । एत्थुवसंहारगाहा
__पत्थो तिहा विहत्तो अणागदो वट्टमाणतीदो य ।
एदेसु अदीदेण दु मिणिज्जदे सव्वबीजं तु ।। २० ॥ तधा कालो वि तिविहो, अणागदो वट्टमाणो अदीदो चेदि । तत्थ अदीदेण मिणिज्जते सव्वे जीवा । एत्थुवसंहारगाहा
कालो तिहा विहत्तो अणागदो वट्टमाणतीदो य । एदेसु अदीदेण दु मिणिज्जदे जीवरासी दु ॥ २१ ॥
धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य और लोकाकाश, ये तीनों ही समान होते हुए स्तोक हैं। तथा जीवद्रव्य, पुद्गलद्रव्य, कालके समय और आकाशके प्रदेश, ये उत्तरोत्तर वृद्धिकी अपेक्षा अनन्तगुणे हैं ॥ १९ ॥
समाधान-- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण निकालने में अतीत कालका ही ग्रहण किया है।
जिसप्रकार, सब लोकमें प्रस्थ तीन प्रकारसे विभक्त है, अनागत, वर्तमान और अतीत । उनमेंसे जो निष्पन्न नहीं हुआ है वह अनागत प्रस्थ है, जो बनाया जा रहा है वह वर्तमान प्रस्थ है, और जो निप्पन्न हो चुका है तथा व्यवहारके योग्य है वह अतीत प्रस्थ है। उनमेंसे अतीत प्रस्थके द्वारा संपूर्ण बीज मापे जाते हैं। यहां पर इस विषयकी उपसंहाररूप गाथा कहते हैं
_ प्रस्थ तीन प्रकारका है, अनागत, वर्तमान और अतीत । इनमेंसे अतीत प्रस्थके द्वारा संपूर्ण बीज मापे जाते हैं ॥२०॥
उसीप्रकार, काल भी तीन प्रकारका है, अनागत, वर्तमान और अतीत । उनमें से अतीत कालके द्वारा संपूर्ण जीवराशिका प्रमाण जाना जाता है। यहां पर उपसंहाररूप गाथा कहते हैं
___ काल तीन प्रकारका है, अनागतकाल, वर्तमानकाल और अतीतकाल । इनमेंसे अतीतकालके द्वारा संपूर्ण जीवराशिका प्रमाण जाना जाता है ॥ २१॥
१ प्रतिषु जहा लोए तहा सव्वे लोए' इति पाठः।
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