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२६] छखंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, २. च अद्धपोग्गलपरियट्टेण वियहिचारो, उवयारेण तस्स आणतियादो। को वा छद्दव्यपक्खित्तरासी ? वुच्चदे- तिण्णिवारवग्गिदसंवग्गिदरासिम्हि -
सिद्धा णिगोदजीवा वण'फदी कालो य पोग्गला चेय ।
सव्वमलोगागासं छप्पेदे णतपक्खेवा ॥ १६ ॥ एदे छप्पक्खेवपक्खित्ते छदव्वपक्खित्तरासी होदि । एदस्स अजहण्णमणुक्कस्तअणंताणतयस्स जत्तियाणि रूवाणि तत्तियमेत्तो मिच्छाइद्विरासी । एदं कधं णव्यदि ति भणिदे अणंता इदि वयणादो। एदं वयणमसच्चत्तणं किं ण अल्लियदि ति भणिदे असच्चकारणुम्मुकजिणवयणकमलविणिग्गयत्तादो । ण च पमाणपडिग्गहिओ पयत्थो पमाणंतरेण परिक्खिजदि, अवट्ठाणादो ।
परिवर्तनके साथ व्याभिचार हो जायगा सो भी बात नहीं है, क्योंकि, अर्धपुद्गलपरिवर्तन कालको उपचारसे अनन्तरूप माना है।
शंका-जिसमें छह द्रव्य प्रक्षिप्त किये गये हैं वह राशि कौनसी है ?
समाधान-तीनवार वर्गितसंवार्गत राशिमें- सिद्ध, निगोदजीव, वनस्पतिकायिक, पुद्गल, कालके समय और अलोकाकाश ये छहों अनन्त राशियां मिला देना चाहिये ॥१६॥
प्रक्षिप्त करने योग्य इन छह राशियोंके मिला देने पर छह द्रव्य प्रक्षिप्त राशि होती है। इसप्रकार तीनवार वर्गितसंवर्गित राशिसे अनन्तगुणे और छह द्रव्य प्रक्षिप्त राशिसे अनन्तगुणे हीन इस मध्यम अनन्तानन्तकी जितनी संख्या होती है तन्मात्र मिथ्यादृष्टिजीवराशि है।
शंका-मिथ्यादृष्टिराशि इतनी है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-सूत्रमें 'अणंता' ऐसा बहुवचनान्त पद दिया है, जिससे जाना जाता है कि मिथ्यादृष्टिराशि मध्यम अनन्तानन्तप्रमाण होती है।
शंका-- यह वचन असत्यपनेको क्यों नहीं प्राप्त हो जाता है ?
समाधान-असत्य बोलनेके कारणोंसे रहित जिनेन्द्रदेवके मुखकमलसे निकले हुए ये वचन हैं, इसलिये इन्हें अप्रमाण नहीं माना जा सकता। जो पदार्थ प्रमाणप्रसिद्ध है उसकी दूसरे प्रमाणों के द्वारा परीक्षा नहीं की जाती है, क्योंकि, वह पदार्थ प्रमाणसे अवस्थित है।
१ति. प. पत्र ५३. सिद्धा णि गोदसाहियवणप्फदिपोग्गलपमा अणंतगुणा । काल अलोगागासं छच्चेदेणंतक्लेवा ॥ त्रि. सा. ४९. सिद्धा निगोअजीवा वणस्सई काल पुग्गला चेव । सव्वमलोगनहं पुण तिवन्गिउं केवल. पगंमि ॥ क. ग्रं. ४, ८५.
२ प्रतिषु तत्तियाणिमेत्तो' इति पाठः ।
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