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________________ १, २, २.] दव्वपमाणाणुगमे मिच्छाइहिपमाणपरूवणं [ २५ संवग्गिदरासिवग्गसलागाओ हेट्टिमवग्गणट्ठाणेहिंतो उवरि परियम्म-उत्त-अणंतगुणवग्गणहाणाणि गंतूणुप्पण्णाओ, किंतु हेहिमवग्गट्टाणादो उवरि सादिरेयजहण्ण-परित्ताणंतगुणमद्धाणं गंतूणुप्पण्णाओ। केण कारणेण ? जहण्णपरित्ताणतस्स अद्धच्छेदणाहितो विसेसाहियाहि जहण्ण-अणंतागंतस्स वग्गसलागाहि तदियवारवग्गिदसंवग्गिदरासिवग्गसलागाणं वग्गसलागाओ हेट्ठिमअद्धाणेणूणाओ अवहिरिजमाणे सादिरेयजहण्णपरित्ताणंतमागच्छदि त्ति । ण च जहण्ण-अणंताणंतादो हेट्ठिम-अद्धाणं पडुच्च सादिरेयजहण्णपरिताणतगुणं गंतूण सव्वजीवरासिवग्गसलागाओ उप्पण्णाओ, किंतु अणंताणंतगुणं गंतूण सव्यजीवरासिवग्गमलागाओं। कुदो ? 'अणताणतविसए अजहण्णमणुक्कस्स-अणंताणतेणेव गुणगारेण भागहारेण वि होदव्वं ' इदि परियम्मवयणादो। ण च एदस्स जहण्णपरित्ताणतादो विसेसाहियस्स असंखेज्जत्तमसिद्धं, संते वए णटुंतस्स अणंतत्तविरोहादो। ण चाहिये । परंतु तृतीयवार वर्गितसंवर्गित राशिकी वर्गशलाकाएं जघन्य अनन्तानन्तके अधस्तन वर्गस्थानसे ऊपर परिकर्मसूत्रमें कहे गये अनन्तगुणे वर्गस्थान जाकर नहीं उत्पन्न होती हैं, किंतु जघन्य अनन्तानन्तके अधस्तन वर्गस्थानोंसे ऊपर कुछ अधिक जघन्यपरीतानन्तगुणे वर्गस्थान जाकर उत्पन्न होती हैं। इससे प्रतीत होता है कि संपूर्ण जीवराशिकी वर्गशलाका ओंसे तीनवार वर्गितसंवर्गित राशिकी वर्गशलाकाएं अनन्तगुणी न्यून हैं। शंका - ऐसा किस कारणसे है ? समाधान-जो कि जघन्य परीतानन्तके अर्धच्छेदोंसे अधिक हैं ऐसी जघन्य अनन्तानन्तकी वर्गशलाकाओंके द्वारा नघन्य अनन्तानन्तके अधस्तन वर्गस्थानसे न्यून तीसरीवार वर्गितसंवर्गित राशिकी वर्गशलाकाओंकी वर्गशलाकाएं अपहृत करने पर कुछ अधिक जघन्य परीतानन्त आता है। परंतु जघन्य अनन्तानन्तके अधस्तन वर्गस्थानोंकी अपेक्षा जघन्य अनन्तानन्तसे कुछ अधिक जघन्य परीतानन्तगुणे वर्गस्थान जाकर संपूर्ण जीवराशिकीवर्गशलाकाएं नहीं उत्पन्न होती हैं, किंतु जघन्य अनतानन्तसे अनन्तानन्तगुणे वर्गस्थान जाकर संपूर्ण जीवराशिकी वर्गशलाकाएं उत्पन्न होती हैं। क्योंकि, 'अनन्तानन्तके विषयमें गुणकार और भागहार अजघन्यानुत्कृष्ट अर्थात् मध्यम अनन्तानन्तरूप ही होना चाहिये' इसप्रकार परिकर्मसूत्रका वचन है। ऊपर जो जघन्य परीतानन्तसे विशेषाधिक कह आये है वह विशेषाधिक असंख्यातरूप है यह बात असिद्ध नहीं है, क्योंकि, व्यय होने पर समाप्त होनेवाली राशिको अनन्तरूप मानने में विरोध आता है। इसप्रकार कथन करनेसे अर्धपुद्गल १ तस्मिन्नेकवारं वर्गिते द्विकवारानन्तस्य जघन्यमुत्पद्यते । ततोऽनन्तस्थानानि गत्वा वर्गशलाकाः। त्रि. सा, गा.६९ टीका । तस्मिन्नेकवारं वर्णिते जघन्यद्विकवारानंतमुत्पद्यते। ततः अनंतानंतवर्गस्थानानि गत्वा जीवराशेर्वर्गशलाका. राशिः । गो. जी. जी. प्र. टी. ( पर्याप्तिप्ररूपणा) । २ प्रतिषु 'णिटुंतस्स ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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