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१, २, २.] दयपमाणाणुगमे मिच्छाइहिपमाणपरूवणं
[१५ प्पाइडजाणुगभावी जीवो। जंतं तच्चदिरित्तदव्याणंतं तं दुविहं, कम्माणत णोकम्मागंतमिदि । जं तं कम्माणंतं तं कम्मस्स पदेसा। जं तं णोकम्माणंतं तं कडय-रुजगदीवसमुद्दादि एयपदेसादि पोग्गलदव्यं वा । आगममधिगम्य विस्मृतः कान्तर्भवतीति चेत्तद्वतिरिक्तद्रव्यानन्ते । जं तं सस्सदाणंतं तं धम्मादिदव्यगयं । कुदो ? सासयत्तेण दव्याणं विणासाभावादो। जं तं गणणाणंतं तं वहुवण्णणीयं सुगमं च । जं तं अपदेसियाणते तं परमाणू । नोकर्मद्रव्यानन्ते द्रव्यत्वं प्रत्यविशिष्टयोः शाश्वताप्रदेशानन्तयोरन्तर्भावः किमिति न स्यादिति चेत् ? उच्यते-न तावच्छाश्वतानन्तं नोकर्मद्रव्यानन्तेऽन्तभवति, तयोभदात् । अन्तो विनाशः, न विद्यते अन्तो विनाशो यस्य तदनन्तम् । द्रव्यं शाश्वतमनन्तं शाश्वतानन्तम् । नोकर्म च द्रव्यगतानन्त्यापेक्षया कटकादीनां वास्तवान्ताभावापेक्षया च अनन्तम् , ततो नानयोरेकत्वमिति । एकप्रदेशे परमाणौ तद्वयतिरिक्तापरो द्वितीयः
जो जीव भविष्यकालमै अनन्तविषयक शास्त्रको जानेगा उसे भावी-नोआगमध्यानन्त कहते हैं। सद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यान्त दो प्रकारका है, कर्मतव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यानन्त और नोकर्मतद्वयातिरिक्त नोआगमद्रव्यानन्त । ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के प्रदेशांको कर्मतद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यानन्त कहते हैं। कटक, रुचकवरद्वीप और समुद्रादि अथवा एक प्रदेशादि पुद्गलद्रव्य ये सब नोकर्मतद्वयतिरिक्त-नोआगमद्रव्यानन्त हैं।
शंका--जो आगमका अध्ययन करके भूल गया है उसका द्रव्यनिक्षेपके किस भेदमें अन्तर्भाव होता है ?
समाधान-ऐसे जीवका तव्यतिरिक्त नोकर्मद्रव्यानन्तमें अन्तर्भाव होता है।
शाश्वतानन्त धर्मादि द्रव्योंमें रहता है, क्योंकि, धर्मादि द्रव्य शाश्वतिक होनसे उनका कभी भी विनाश नहीं होता है।
जो गणनानन्त है वह बहुवर्णनीय और सुगम है। एक परमाणुको अप्रदेशिकानात कहते हैं।
शंका--द्रव्यत्वके प्रति अविशिष्ट ऐसे शाश्वतानन्त और अप्रदेशानन्तका नोकर्मद्रव्यानन्तमें अन्तर्भाव क्यों नहीं हो जाता है ?
समाधान-शाश्वतानन्तका नोकर्मद्रव्यानन्तमें तो अन्तर्भाव होता नहीं है, क्योंकि, इन दोनों में परस्पर भेद है। आगे उसीका स्पष्टीकरण करते हैं। अन्त विनाशको कहते हैं, जिसका अन्त अर्थात् विनाश नहीं होता है उसे अनन्त कहते हैं। जो धर्मादिक द्रव्य
अनन्त है उसे शाश्वतानन्त कहते हैं। और नोकर्म द्रव्यगत अनन्तताकी अपेक्षा और कटकादिके वस्तुतः अन्तके अभावकी अपेक्षा अनन्त है, इसलिये इन दोनों में एकत्व नहीं हो सकता है । एकप्रदेशी परमाणुमें उस एक प्रदेशको छोड़कर अन्त इस संशाको प्राप्त होनेवाला दूसरा प्रदेश नहीं पाया जाता है, इसलिये परमाणु अप्रदेशानन्त है। ऐसी स्थितिमें
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