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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १,२, २ .
प्रदेशेोऽन्तव्यपदेशभाक् नास्तीति परमाणुरप्रदेशानन्तः । तथा च कथमयं नोकर्मद्रव्यानन्ते द्रव्यगतानन्तसंख्यापेक्षया अनन्तव्यपदेशभाज्यन्तर्भवेत् । द्रव्यं प्रत्येकत्वं तत्रास्ति इति चेत् ? अस्तु तथैकत्वं न पुनरन्येनान्येन प्रकारेणायातानन्त्यं प्रति । जं तं एयातं तं लोगमज्झादो एगसेटिं पेक्खमाणे अंताभावादो एयाणंतं । ण दव्वाणंते दव्यभेदमस्ति - ऊदे दमणतं पददि, एगदव्यस्सागासस्स पज्जवसाणदंसणाभावमस्सिदूण द्विदत्तादों । जहा अपारो सागरो, अथाहं जलमिदि । जं तं उभयाणतं तं तथा चैव उभयदिसाए पेक्खमाणे अंताभावादो उभयादेसाणंतं । जं तं वित्थाराणंतं तं पदरागारेण आगासं पेक्खमाणे अंताभावादो भवदि । जं तं सव्वाणंतं तं घणागारेण आगासं पेक्खमाणे अंताभावादो सव्वाणंतं भवदि । जं तं भावाणंतं तं दुविहं आगमदो णोआगमदो य । आगमदो भावानंतं अनंतपाहुडजाणगो उवजुत्तो । जं तं णोआगमदो भावानंतं तं तिकालजादं अनंतपज्जय परिणदजीवादिदव्वं ।
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दे अते के अनंतेण पयदं ? गणणाणतेण पयदं । तं कथं जाणिजदि ? द्रव्यगत अनन्त संख्याकी अपेक्षा अनन्त संशाको प्राप्त होनेवाले नोकर्मद्रव्यानन्तमें वह अप्रेदशानन्त कैसे अन्तर्भूत हो सकता है, अर्थात् नहीं हो सकता है, इसलिये अप्रदेशानन्त भी स्वतन्त्र है ।
शंका- द्रव्य के प्रति एकत्व तो उनमें पाया ही जाता है ?
समाधान -- इन अनन्तोंमें यदि द्रव्यके प्रति एकत्व पाया जाता है तो रहा आवे, परंतु इतने मात्र से इन अनन्तोंमें अन्य अन्य प्रकारसे आये हुए आनन्त्य के प्रति एकत्व नहीं हो सकता है ।
लोकके मध्य से आकाश-प्रदेशों की एक श्रेणीको देखने पर उसका अन्त नहीं पाया जाता है, इसलिये उसे एकानन्त कहते हैं । द्रव्यभेदका आश्रय लेकर स्थित द्रव्यानन्तमें यह एकानन्त अन्तर्भूत नहीं होता है, क्योंकि, यह एकानन्त एक आकाशद्रव्यका अन्त नहीं दिखाई देनेके कारण उसका आश्रय लेकर स्थित है, जैसे अपार समुद्र, अथाह जल इत्यादि । लोकके मध्यसे आकाश प्रदेशपंक्तिको दो दिशाओं में देखने पर उसका अन्त नहीं पाया जाता है, इसलिये उसे उभयानन्त कहते हैं । आकाशको प्रतररूपसे देखने पर उसका अन्त नहीं पाया जाता है, इसलिये उसे विस्तारानन्त कहते हैं । आकाशको घनरूपसे देखने पर उसका अन्त नहीं पाया जाता है, इसलिये उसे सर्वानन्त कहते हैं । आगम और नोआगमकी अपेक्षा भावानन्त दो प्रकारका है। अनन्तविषयक शास्त्रको जाननेवाले और वर्तमान में उसके उपयोगले उपयुक्त जीवको आगमभावानन्त कहते हैं । त्रिकालजात अनन्त पर्यायोंसे परिणत जीवादि द्रव्य नोआगमभावानन्त है ।
शंका- - इन ग्यारह प्रकारके अमन्तोंमेंसे प्रकृत में किस अनन्त से प्रयोजन है ? समाधान - प्रकृतमें गणनानन्त से प्रयोजन है ।
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