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(७२) १. बारहवें अंग दृष्टिवादके चतुर्थ भेद पूर्वगतका द्वितीय भेद
आग्रायणीय पूर्व.
!!!!!
५
।
१४
९१०११--
१२अतीत सिद्ध-बद्ध १३प्रणिधिकल्प अर्थ कल्पनिर्याण व्रतादिक भौम सर्वार्थ
पूर्वान्त
अपरान्त
चयनलब्धि
अधोपम
अनागत ,
अध्रुव
ध्रुव
२० पाहुड
. उनमें चतुर्थपाहुड कर्मप्रकृति.
२१
२२
१६-- १७१८
__२३लेश्या परिणाम १५निधत्तानिधत्त २०-- लेश्याकर्म सातासात भवधारणीय दीर्घह्रस्व पुद्गलात्म निकाचितानिकर्मस्थिति | पश्चिमस्कंध (अल्पबहुत्व
काचित
EFFER
मोक्ष
संक्रम
लेश्या
निबंधन प्रक्रम
उपक्रम ---बंधन
| उदय
बंधनीय
बंधक
बंधविधान
-
वर्गणा खंड ५
खुदाबंध खंड २
महाबंध खंड ६
इस वंशवृक्षसे स्पष्ट है कि आग्रायणीय पूर्वके चयनलब्धि अधिकारके चतुर्थ भेद कर्म प्रकृति पाहुड के चौवीस अनुयोगद्वारोंसे ही चार खंड निष्पन्न हुए हैं। इन्हीं के बंधन अनुयोग. द्वार के एकभेद बंधविधानसे जीवट्ठाण का बहुभाग और तीसरा खंड बंधस्वामित्वविचय किस प्रकार निकले यह आगेके वंश वृक्षोंसे स्पष्ट हो जायगा ।
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