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१ गौतम २ लोहार्य ३ जम्बू ४ विष्णु ५ नन्दिमित्र ६ अपराजित ७ गोवर्धन ८ भद्रबाहु
(२२) महावीर की शिष्य-परम्परा
१५ धृतिसेन केवली
१६ विजय १७ बुद्धिल १८ गंगदेव
१९ धर्मसेन श्रुतकेवली
२० नक्षत्र २१ जयपाल २२ पाण्डु २३ ध्रुवसेन २४ कंस
एकादशांगधारी
९ विशाखाचार्य १० प्रोष्ठिल ११ क्षत्रिय १२ जय १३ नाग १४ सिद्धार्थ
। दशपूर्वी
२५ सुभद्र २६ यशोभद्र २७ यशोबाहु २८ लोहार्य
आचारांगधारी -
ठीक यही परम्पर। धवलामें आगे पुनः वेदनाखंडके आदिमें मिलती है। इन दोनों
__ स्थानोंपर तथा बेल्गोलके शिलालेख नं. १ में नं. २ के आचार्य का नाम आचार्य-परम्परा
लोहार्य ही पाया जाता है, किन्तु हरिवंशपुराण, श्रुतावतार व ब्रह्म हेमकृत में नाम भेद
५ श्रुतस्कंध व शिलालेख नं. १०५ (२५३) में उस स्थान पर सुधर्मका नाम मिलता है। यही नहीं, स्वयं धवलाकारद्वारा ही रची हुई 'जयधवला' में भी उस स्थानपर लोहार्य नहीं सुधर्मका नाम है । इस उलझनको सुलझानेवाला उल्लेव 'जंबूदीवपण्णत्ति ' में पाया जाता है । वहां यह स्पष्ट कहा गया है कि लोहार्यका ही दूसरा नाम सुधर्म था । यथा --
'तेण वि लोह जस्स य लोहज्जेण य सुधम्म गामेण । गणधर-सुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिद्दिढें ॥ १०॥
(जै सा. सं. १ पृ. १४९) नं. ४ पर विष्णुके स्थानमें भी नामभेद पाया जाता है । जंबूदीवपण्णत्ति, आदिपुराण व श्रुतस्कंधमें उस स्थानपर : नन्दी ' या नन्दीमुनि नाम मिलता है। यह भी लोहार्य और सुधर्मके समान एक ही आचार्यके दो नाम प्रतीत होते हैं । इस भेदका कारण यह प्रतीत होता है कि इन आचार्यका पूरा नाम विष्णुनन्दि होगा और वे ही एक स्थानपर संक्षेपसे विष्णु और
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