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________________ (२१) प्रख्याति जैनियोंमें आजतक चली आती है और उस तिथिको वे श्रुतकी पूजा करते हैं *। फिर भूतबलिने उन षटखण्डागम पुस्तकोंको जिनपालितके हाथ पुष्पदन्त गुरुके पास भेजा । पुष्पदन्त उन्हें देखकर और अपने चिन्तित कार्यको सफल जान अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने भी चातुर्वर्ण संघसहित सिद्धान्तकी पूजा की। ५. आचार्य-परम्परा अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि धरसेनाचार्य और उनसे सिद्धान्त सीखकर ग्रंथ र रचना करनेवाले पुष्पदन्त और भूतबलि आचार्य कब हुए ! प्रस्तुत ग्रंथ में इस पूर्वकी सम्बन्ध की कुछ सूचना महावीर स्वामीसे लगाकर लोहाचार्य तक की परम्परासे _ मिलती है। वह परम्परा इस प्रकार है, महावीर भगवान्के पश्चात् क्रमशः उस पर गौतम, लोहार्य और जम्बूस्वामी समस्त श्रुत के ज्ञायक और अन्तमें केवलज्ञानी हुए। उनके पश्चात् क्रमशः विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु, ये पांच श्रुतकेवली हुए । उनके पश्चात् विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिल, गंगदेव, और धर्मसेन, ये ग्यारह एकादश अंग और दशपूर्वके पारगामी हुए। तत्पश्चात् नक्षत्र, जयपाल, पांडु, ध्रुवसेन और कंस, ये पांच एकादश अंगोंके धारक हुए, और इनके पश्चात् सुभद्र, यशोभद्र, यशोवाहु और लोहार्य, ये चार आचार्य एक आचारंग के धारक और शेष श्रुतके एकदेश ज्ञाता हुए। इसके पश्चात् समस्त अंगों और पूर्वोका एकदेश ज्ञान आचार्य परम्परासे आकर धरसेनाचार्यको प्राप्त हुआ (६५-६६ ) । यह परम्परा इस प्रकार है * ज्येष्ठसितपक्षपञ्चम्यां चातुर्वर्ण्यसंघसमवेतः । तत्पुस्तकोपकरणैर्व्यधात् क्रियापूर्वकं पूजाम् ।। १४३ ।। श्रुतपश्चमीति तेन प्रख्याति तिथिरियं परामाप । अद्यापि येन तस्यां श्रुतपूजां कुर्वते जैनाः ॥ १४४ ॥ इन्द्रनन्द्रि-श्रुतावतार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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