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________________ पष्पद त (२०) 'वीसदि सूत्रों' की रचना करके उन्हें पढ़ाया, और फिर उन्हें भूतबलिके पास भेज दिया । भूतबलिने उन्हें अल्पायु जान, महाकर्मप्रकृति पाहुड़के विच्छेद-भयसे द्रव्यप्रमाणसे लगाकर आगेकी ग्रन्थ-रचना की । इसप्रकार पुष्पदन्त और भूतबलि दोनों इस सिद्धान्त ग्रंथके रचयिता हैं और जिनपालित उस रचनाके निमित्त कारण हुए। पुष्पदन्त और भूतबलिके बीच आयुमें पुष्पदन्त ही जेठे प्रतीत होते हैं । धवलाकारने अपनी टीकाके मंगलाचरणमें उन्हें ही पहले नमस्कार किया है और उन्हें 'इसि-समिइ-वइ ' ( ऋषिसमिति-पति ) अर्थात् ऋषियों व मुनियोंकी सभाके मुखपालत नायक कहा है। उनकी ग्रंथ-रचना भी आदिमें हुई और भूतबलिने अपनी भूतबलिसे जठ थ रचना अन्ततः उन्हींके पास भेजी जिसे देख वे प्रसन्न हुए। इन बातोंसे उनका ज्येष्ठत्व पाया जाता है । नन्दिसंघकी प्राकृत पट्टावलीमें वे स्पष्टतः भूतबलिसे पूर्व पट्टाधिकारी हुए बतलाये गये हैं। वर्तमान ग्रंथमें पुष्पदन्तकी रचना कितनी है और भूतबलिकी कितनी, इसका स्पष्ट पुष्पदन्त और * उल्लेख पाया जाता है । पुष्पदन्तने आदिके प्रथम — वीसदि सूत्र' रचे । पर - इन वीस सूत्रोंसे धवलाकारका समस्त सत्प्ररूपणाके वीस अधिकारोंसे तात्पर्य भूतबलिके क है, न कि आदिके २० नम्बर तकके सूत्रोंसे, क्योंकि, उन्होंने स्पष्ट कहा है चाच किसन कि भतबलिने द्रव्यप्रमाणानुगमसे लेकर रचना की ( पृ. ७१ )। जहांसे द्रव्यकितना ग्रंथ रचा प्रमाणानुगम अर्थात् संख्याप्ररूपणा प्रारंभ होती है वहांपर भी कहा गया है कि संपहि चोदसण्हं जीवसमासाणमत्थित्तमवगदाणं सिस्साणं तेसिं चेव परिमाणं पडिवोहणई भूदबलियाइरियो सुत्तमाह । अर्थात् 'अब चौदह जीवसमासों के अस्तित्व को जान लेनेवाले शिष्यों को उन्हीं जीवसमासोंके परिमाण बतलानेके लिये भूतबलि आचार्य सूत्र कहते हैं ' । इसप्रकार सत्प्ररूपणा अधिकारके कर्ता पुष्पदन्त और शेष समस्त ग्रंथके कर्ता भूतबलि ठहरते हैं। धवलामें इस ग्रंथकी रचनाका इतना ही इतिहास पाया जाता है । इससे आगेका - वृत्तान्त इन्द्रनदिकृत श्रुतावतारमें मिलता है । उसके अनुसार भूतबलि आचार्यने ' षटखण्डागमकी रचना पुस्तकारूढ़ करके ज्येष्ठ शुक्ला ५ को चतुर्विध संघके साथ प्रचार ___उन पुस्तकोंको उपकरण मान श्रुतज्ञानकी पूजा की जिससे श्रुतपंचमी तिथिकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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