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२७६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, ४५. कथमनुक्तमवगम्यते चेत्परिशेषात् । स्थावरकर्मणः किं कार्यमिति चेदेकस्थानावस्थापकत्वम् । तेजोवाबकायानां चलनात्मकानां तथा सत्यस्थावरत्वं स्यादिति चेन्न, स्थास्नूनां प्रयोगतश्चलच्छिन्नपर्णानामिव गतिपर्यायपरिणतसमीरणाव्यतिरिक्तशरीरत्वतस्तेषां गमनाविरोधात् ।
वादरजीवप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमाहबादरकाइयाबादरेइंदिय-प्पहुडि जाव अजोगिकेवलि ति॥४५॥
बादरः स्थूलः सप्रतिघातः कायो येषां ते बादरकायाः। पृथिवीकायिकादिषु वनस्पतिपर्यन्तेषु पूर्वमेव बादराणां सूक्ष्माणां च सत्त्वमुक्तं ततोऽत्र बादरैकेन्द्रियग्रहणमनर्थकमिति चेन्नानर्थकम्, प्रत्येकशरीरवनस्पत्युपादानार्थम् तदुपादानात्प्रत्येकशरीर
शंका-सूत्रमें एकन्द्रिय जीवोंको स्थावर तो कहा नहीं है, फिर कैसे जाना जाय कि एकोन्द्रिय जीवोंको स्थावर कहते हैं ?
समाधान-सूत्रमें जब द्वीन्द्रियादिक जीवोंको सकायिक कहा है, तो परिशेषन्यायसे यह जाना जाता है कि एकेन्द्रिय जीव स्थावर कहलाते हैं।
शंका-स्थावरकर्मका क्या कार्य है ? समाधान-एक स्थान पर अवस्थित रखना स्थावरकर्मक कार्य है।
शंका-ऐसा मानने पर, गमन स्वभावयाले अग्निकायिक, वायुकायिक और जलकायिक जीवोंको अस्थावरपना प्राप्त हो जायगा ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, जिसप्रकार वृक्षमें लगे हुए पत्ते वायुसे हिला करते हैं और टूटने पर इधर उधर उड़ जाते हैं, उसीप्रकार अग्निकायिक जोर जलकायिकके प्रयोगसे गमन मानने में कोई विरोध नहीं आता है । तथा यायुके गतिपर्यायसे परिणत शरीरको छोड़कर कोई दूसरा शरीर नहीं पाया जाता है. इसलिये उसके गमन करने में भी कोई विरोध नहीं आता है।
अब बादर जीवोंके प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैंबादर एकेन्द्रिय जीवोंसे लेकर अयोगिकेवलीपर्यन्त जीव बादरकायिक होते हैं ॥ ४५ ॥
जिन जीवोंका शरीर बादर, स्थूल अर्थात् प्रतिघातसहित होता है उन्हें बादरकाय कहते हैं।
शंका-पृथिवीकायिकसे लेकर वनस्पति पर्यन्त जीवों में बादर और सूक्ष्म दोनों प्रकारके जीवोंका सद्भाव पहले ही कह आये हैं, इसलिये इस सूत्रमें बादर एकेन्द्रिय पदका ग्रहण करना निष्फल है ?
समाधान-अनर्थक नहीं है, क्योंकि, प्रत्येकशरीर वनस्पतिके ग्रहण करनेके लिये
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