SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, १, ४४.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे कायमग्गणापरूवणं [२७५ दृष्टित्वमिति नैष दोषः, परिज्ञाननिरपेक्षमूढमिथ्यात्वसत्त्वस्य तत्राविरोधात् । अथवा ऐकान्तिकप्तांशयिकमूढव्युद्ग्राहितवैनायकस्वाभाविकविपरीतमिथ्यात्वानां सप्तानामपि तत्र सम्भवः समस्ति । अत्रतनजीवानां सप्तविधमिथ्यात्वकलङ्काङ्कितहृदयानामविनष्टमिथ्यात्वपर्यायेण सह स्थावरत्वमुपगतानां तत्सत्याविरोधात् । इन्द्रियानुवादेन एकेन्द्रिया विकलेन्द्रियाश्च सर्वे मिथ्यादृष्टय इत्यमाणि, ततस्तेनैव गतार्थत्वान्नारम्भणीयमिदं सूत्रमिति नैष दोषः, पृथिवीकायादीनामियन्तीन्द्रियाणि भवन्ति न भवन्तीति अनवगतस्य विस्मृतस्य वा शिष्यस्य प्रश्नवशादस्य सूत्रस्यावतारात् । त्रसजीवप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमाह - तसकाइया बीइंदिय-प्पहुडि जाव अजोगिकेवलि ति ॥४४॥ एते त्रसनामकर्मोदयवशवर्तिनः । के पुनः स्थावराः इति चेदेकेन्द्रियाः । समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, पृथिवीकायिक आदि जीवों में परिज्ञानकी अपेक्षारहित मूढ़ मिथ्यात्वका सद्भाव मान लेने में कोई विरोध नहीं आता है। अथवा, ऐकान्तिक, सांशयिक, मूढ़, ब्यूग्राहित, वैनयिक, स्वाभाविक और विपरीत इन सातों प्रकारके मिथ्यात्वोंका भी उन पृथिवीकायिक आदि जीवों में सदभाव संभव है, क्योंकि, जिनका हृदय सात प्रकारके मिथ्यात्वरूपी कलंकसे अंकित है ऐसे मनुष्यादि गतिसंबन्धी जीव पहले ग्रहण की हुई मिथ्यात्व पर्यायको न छोड़कर जब स्थावर पर्यायको प्राप्त हो जाते हैं, तो उनके सातों ही प्रकारका मिथ्यात्व पाया जाता है, इस कथन में कोई विरोध नहीं आता है। शंका- इन्द्रियानुवादसे एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय ये सब जीव मिथ्यादृष्टि होते हैं, ऐसा कह आये हैं, इसलिये उसीसे यह शान हो जाता है कि पृथिवीकायिक आदि जीव मिथ्यादृष्टि होते हैं । अतः इस सूत्रको प्रथक् रूपसे बनानेकी कोई आवश्यकता नहीं थी ? समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, पृथिवीकाय आदि जीवोंके इतनी इन्द्रियां होती हैं, अथवा इतनी इन्द्रियां नहीं होती हैं, इसप्रकार जिस शिष्यको ज्ञान नहीं है, अथवा जो भूल गया है, उस शिष्यके प्रश्नके अनुरोधसे इस सूत्रका अवतार हुआ है। अब स जीवोंके प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैंद्वीन्द्रियसे आदि लेकर अयोगिकेवलीतक त्रस जीव होते हैं ॥४४॥ · इन सब जीवोंके त्रस नामकर्मका उदय पाया जाता है, इसलिये इन्हें सकायिक कहते हैं। शंका - स्थावर जीव कौन कहलाते हैं ? समाधान-एकेन्द्रिय जीव स्थावर कहलाते हैं। १ त्रसकायेषु चतुर्दशापि सन्ति । स. सि. १.८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy