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________________ १, १, २७.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे गदिमग्गणापरूवणं गंतूण तेणेव विहिणा छण्णोकसाए पुरिसवेद-चिराण-संत-कम्मेण सह जुगवं उवसामेदि । तत्तो उवरि समऊण-दो-आवलियाओ गंतूग पुरिसवेद-णवक-बंधमुवसामेदि । तत्तो अंतोमुहु तमुवार गंतूण पडिसमयमसंखेजाए गुणसेढीए अपच्चक्खाण-पच्चक्खाणावरणसण्णिदे दोण्णि वि कोधे कोध-संजलण-चिराण-संतकम्मेण सह जुगवमुवसामेदि । तत्तो उवरि दो आवलियाओ समऊणाओ गंतूण कोध-संजलण-णवक-बंधमुवसामेदि । तदो अंतोमुहुत्तं गंतूण तेसिं चेव दुविहं माणमसंखेज्जाए गुणसेढीए माणसंजलण-चिराणसंत-कम्मेण सह जुगवं उवसामेदि । तदो समऊण-दो-आवलियाओ गंतूण माणसंजलणमुवसामेदि । तदो पडिसमयमसंखेजगुणाए सेढीए उवसातो अंतोमुहुत्तं गंतूण दुविहं माय माया-संजलण-चिराण-संत-कम्मेण सह जुगवं उवसामेदि । तदो दो आवलियाओ समऊणाओ गंतूण माया-संजलणमुवसामेदि । तदो समयं पडि असंखेजगुणाए सेढीए पंदेसमुवसातो अंतोमुहुत्तं गंतूण लोभ-संजलण-चिराण-संत-कम्मेण सह पच्चक्खाणापच्चक्खाणावरण-दुविहं लोभं लोभ-वेदगाए विदिय-ति-भागे सुहुमकिट्टीओ करेंतो उपशम करता है। फिर एक अन्तर्मुहूर्त जाकर उसी विधिसे पुरुषवेदके ( एक समय कम दो आवलीमात्र नवकसमयप्रबद्धोंको छोड़कर बाकीके संपूर्ण) प्राचीन सत्तामें स्थित कर्मके साथ छह नोकषायका उपशम करता है । इसके आगे एक समय कम दो आवली काल बिता कर पुरुषवेदके नवक समयबद्धका उपशम करता है। इसके पश्चात् प्रत्येक समयमें असंख्यातगुणी श्रेणीके द्वारा संज्वलनक्रोधके एक समय कम दो आघलीमात्र नवक समयप्रबद्धको छोड़कर पहलेके सत्तामें स्थित काँके साथ अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान क्रोधोंका एक अन्तर्महर्त में एकसाथ ही उपशम करता है। इसके पश्चात् एक समय कम दो आवलीमें क्रोधसंज्वलनके नबक-समयप्रबद्धका उपशम करता है। तत्पश्चात् प्रतिसमय असंख्यातगुणी श्रेणीके द्वारा संज्वलनमानके एक समय कम दो आवलीमात्र नवक-समयप्रबद्धको छोड़कर प्राचीन सत्तामें स्थित कमौके साथ अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यानमानका एक अन्तर्मुहूर्तमें उपशम करता है । इसके पश्चात् एक समयकम दो आवलीमात्र कालमें संज्वलनमानके नवक-समयबद्धका उपशम करता है। तदनन्तर प्रतिसमय असंख्यात गुणित श्रेणीरूपसे उपशम करता हुआ, मायासंज्वलनके नवक-समयप्रबद्धको छोड़कर प्राचीन सत्तामें स्थित कमौके साथ अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान मायाका अन्तर्मुहूर्तमें उपशम करता है । तत्पश्चात् एक समय कम दो आवलीमात्र कालमें माया संज्वलनके नवक-समयप्रबद्धका उपशम करता है । तत्पश्चात् प्रत्येक समयमें असंख्यातगणी श्रेणीरूपसे कर्मप्रदेशोंका उपशम करता हुआ, लोभवेदकके दसरे त्रिभागमें सूक्ष्मकृष्टिको करता हुआ संज्वलनलोभके नवक-समयप्रबद्धको छोड़कर प्राचीन सत्तामें स्थित कौके साथ प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान इन दोनों लोभोंका एक अन्तर्मुहूर्तमें उपशम करता १ ल. क्ष. गा. २६२. इत्यत्र विशेषो दृष्टव्यः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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