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________________ ६. पूर्वोक्त नं. ५ की नागरी प्रतिलिपि करते समय पं. सीताराम शाखीने एक और नागरी प्रतिलिपि करके अपने पास रख ली थी, ऐसा श्रीमान् लाला प्रद्युम्नकुमारजी रईस, सहारनपुर, की सूचनासे जाना जाता है । यह प्रति अब भी पं. सीताराम शास्त्रीके अधिकारमें है । ७. पूर्वोक्त नं. ६ की प्रतिपरसे ही सीताराम शास्त्रीने वे अनेक प्रतियां की हैं जो अब कारंजा, आरा, सागर आदि स्थानों में विराजमान हैं। सागर की प्रति १३॥ इंच लम्बे, ७॥ इंच चौडे कागज के १५९६ पत्रोंपर है । यह प्रति सतर्कसुधातरंगिणी पाठशाला, सागर, के चैत्यालयमें विराजमान है और श्रीमान् पं. गणेशप्रसादजी वर्णीके अधिकारमें है। ८. नं. ७ परसे अमरावतीकी धवला प्रति १७ इंच लम्बे, ७ इंच चौड़े कागजके १४६५ पत्रोंपर बटुकप्रसादजी कायस्थके हाथसे संवत् १९८५ के माघकृष्णा ८ शनि० को लिखी गई है । यह प्रति अब इस साहित्य उद्धारक फंडके ट्रस्टी श्रीमान् सिं. पन्नालाल बंशीलालजी के अधिकारमें है और अमरावतीके परवार दि. जैन मंदिरमें विराजमान है । इसके ३७५ पत्रोंका संशोधन सहारनपुरवाली नं. ५ की प्रतिपरसे १९३८ में कर लिया गया था। प्रस्तुत ग्रंथ की प्रथम प्रेसकापी इसी प्रतिपरसे की गई थी। इसका उल्लेख प्रस्तुत ग्रंथकी टिप्पणियों में 'अ' संकेत द्वारा किया गया है । ९. दूसरी प्रति जिसका हमने पाठ संशोधनमें उपयोग किया है, आराके जैनसिद्धान्त भवन में विराजमान है, और लाला निर्मलकुमारजी चक्रेश्वरकुमारजीके अधिकारमें है। यह उपर्युक्त प्रति नं. ६ पर से स्वयं सीताराम शास्त्री द्वारा वि. सं. १९८३ माघ शुक्ला ५ रविवार को लिखकर समाप्त की हुई है । इसके कागज ११॥ इंच लम्बे और ६॥ इंच चौड़े हैं, तथा पत्र संख्या ११२७ है । यह हमारी टिप्पणियों आदि की 'आ' प्रति है। १०. हमारेद्व रा उपयोगमें ली गई तीसरी प्रति कारंजाके श्री महावीर ब्रह्मचर्याश्रमकी है और हमें पं. देवकीनन्दनजी सिद्धान्तशास्त्रीके द्वारा प्राप्त हुई । यह भी उपर्युक्त नं. ६ परसे स्वयं सीताराम शास्त्री द्वारा १३॥ इंच लंबे, ८ इंच चौड़े कागजके १५१२ पत्रोंपर श्रावण शुक्ला १५ सं. १९८८ में लिखी गई है। इस प्रतिका उल्लेख टिप्पणियों आदि में 'क' संकेत द्वारा किया गया है। सहारनपुर की प्रतिसे लिए गए संशोधनोंका संकेत 'स' प्रति के नामसे किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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