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________________ (६) २. हमारी आदर्श प्रतियां १. धवलादि सिद्धान्तग्रंथोंकी एकमात्र प्राचीन प्रति दक्षिण कर्नाटक देशके मूडविद्री नगरके गुरुवसदि नामक जैन मंदिर में वहांके भट्टारक श्रीचारुकीर्तिजी महाराज तथा जैन पंचोंके अधिकारमें है । तीनों ग्रंथोंकी प्रतियां ताड़पत्र पर कनाड़ी लिपिमें हैं। धवलाके ताडपत्रोंकी लम्बाई लगभग २। फुट, चौड़ाई ३ इंच, और कुलसंख्या ५९२ है । यह प्रति कबकी लिखी हुई है इसका ठीक ज्ञान प्राप्त प्रतियों पर से नहीं होता है। किन्तु लिपि प्राचीनकनाड़ी है जो पांच छै सौ वर्षोंसे कम प्राचीन नहीं अनुमान की जाती । कहा जाता है कि ये सिद्धान्त ग्रंथ पहले जैनविद्री अर्थात् श्रवणबेलगोल नगर के एक मंदिरजी में विराजमान थे । इसी कारण उस मंदिरकी अभी तक सिद्धान्त वस्ती' नामसे प्रसिद्धि है । वहां से किसी समय ये ग्रंथ मूडविद्री पहुंचे । (एपीप्राफिआ कर्नाटिका, जिल्द २, भूमिका पृ २८). २. इसी प्रतिकी धवलाकी कनाड़ी प्रतिलिपि पं. देवराजसेठी, शान्तप्पा उपाध्याय और ब्रह्मय्य इन्द्र द्वारा सन् १८९६ और १९१६ के बीच पूर्ण की गयी थी । यह लगभग १ फुट २ इंच लम्बे, और ६ इंच चौड़े काश्मीरी कागज के २८०० पत्रों पर है | यह भी मूडविद्री के गुरुवसदि मंदिर में सुरक्षित है। ३. धवलाके ताडपत्रोंकी नगरी प्रतिलिपि पं. गजपति उपाध्याय द्वारा सन् १८९६ और १९१६ के बीच की गई थी। यह प्रति १ फुट ३ इंच लम्बे, १० इंच चौड़े काश्मीरी कागज के १३२३ पत्रोंपर है । यह भी मूडविद्री के गुरुवसदि मंदिरमें सुरक्षित है । ४. मूडविद्रीके ताडपत्रों परसे सन् १८९६ और १९१६ के बीच पं गजपति उपाध्यायने उनकी विदुषी पत्नी लक्ष्मीबाई की सहायतासे जो प्रति गुप्त रीतिसे की थी वह आधुनिक कनाड़ी लिपिमें कागजपर है । यह प्रति अब सहारनपुरमें लाला प्रद्युम्नकुमारजी रईसके अधिकारमें है। ५. पूर्वोक्त नं. ४ की प्रतिकी नागरी प्रतिलिपि सहारनपुर में पं. विजयचंद्रया और पं. सीतारामशास्त्रीके द्वारा सन् १९१६ और १९२४ के बीच कराई गई थी । यह प्रति १ फुट लम्बे, ८ इंच चौड़े कागजके १६५० पत्रोंपर हुई है । इसका नं. ४ की कनाड़ी प्रतिसे मिलान मूडविद्री के पं. लोकनाथजी शास्त्रीद्वारा सन् १९२४ में किया गया था । यह प्रति भी उक्त लालाजीके ही अधिकारमें है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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