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९६] छक्खंडागमे जीवाणं
[१, १, २. एत्थ पुवाणुपुच्चीए गणिजमाणे दव्य-भाव-सुदं पडुश्च विदियादो, अत्थं पडुश्च पंचमादो केवलणाणादो । पच्छाणुपुबीए गणिजमाणे दब-भाव-सुदं पडुच चउत्थादो सुद-पमाणादो। अत्थं पडुच पढमादो केवलादो। जत्थतत्थाणुपुबीए गणिजमाणे सुदणाणादो केवलणाणादो य । सुदणाणमिदि गुणणामं, अक्खर-पद-संघाद-पडिवत्ति। यादीहि संखेजमत्थदो अणंतं । एइस्स तदुभयवत्तव्वदा । . __अत्थाहियारो दुविहो, अंगबाहिरो अंगपइट्ठो चेदि । तत्थ अंगबाहिरस्स चोद्दस अत्थाहियारा । तं जहा, सामाइयं चउवीसत्थओ वंदणा पडिक्कमणं वेणइयं किदियम्म दसवेयालियं उत्तरायणं कप्पववहारो कप्पाकप्पियं महाकप्पियं पुंडरीयं महापुंडरीयं णिसिहियं चेदि । तत्थ जं सामाइयं तं णाम-दृवणा-दब-खेत-काल-भावेसु समत्तविहाणं वण्णेदि। चउवीसत्थओ चउवीसहं तित्थयराणं वंदण-विहाणं तण्णाम-संठाणुस्सेहपंच-महाकल्लाण-चोत्तीस-अइसय-सरूवं तित्थयर-वंदणाए सहलत्तं च वण्णेदि ।
प्रमाणसे प्रयोजन है, ऐसा उत्तर देना चाहिये।
यहांपर पूर्वानुपूर्वीसे गणना करनेपर द्रव्यश्रुत और भावभुतकी अपेक्षा तो दूसरे श्रुतप्रमाणसे प्रयोजन है और अर्थकी. अपेक्षा पांचवे केवलज्ञानप्रमाणसे प्रयोजन है । पश्चादानु. पूर्वीसे गणना करनेपर द्रव्यश्रुत और भाषश्रुतकी अपेक्षा चौथे श्रुतप्रमाणसे प्रयोजन है और अर्थकी अपेक्षा प्रथम केवलप्रमाणसे प्रयोजन है। यथातथानुपूर्वीले गणना करनेपर श्रुतप्रमाण और केवलप्रमाण इन दोनोंसे प्रयोजन है।
श्रुतहान यह सार्थक नाम है। वह अक्षर, पद, संघात और प्रतिपत्ति आदिकी अपेक्षा संख्यातभेदरूप है और अर्थकी अपेक्षा अनन्त है।
तीन वक्तव्यताओंमेंसे इस श्रुतप्रमाणकी तदुभयवक्तव्यता (स्वसमय-परसमयवक्तव्यता) जानना चाहिये।
__अर्थाधिकार दो प्रकारका है, अंगबाह्य और अंगप्रविष्ट । उन दोनोंमेंसे, अंगवाह्यके चौदह अर्थाधिकार हैं। वे इसप्रकार हैं, सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, बैनयिक, कृतिकर्म, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्प्याकल्प्य, महाकल्प्य, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निषिद्धिका। उनमेसे, सामायिक नामका अंगबाह्य अर्थाधिकार नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन छह भेदों द्वारा समताभावके विधानका वर्णन करता है। चतुर्षिशतिस्तव अर्थाधिकार उस उस कालसंबन्धी चौवीस तीर्थकरोंकी बन्दना करनेकी विधि, उनके नाम, संस्थान, उत्सेध, पांच महाकल्याणक, चौंतीस अतिशयोंके स्वरूप और तीर्थकरोंकी वन्दनाकी सफलताका वर्णन करता है।
१ प्रतिषु ' सम्मत्त' इति पाठः ।
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