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________________ १, १, १.] संत-परूवणाणुयोगहारे सुत्तावयरणं [८७ शब्दनय': लिङ्गसंख्याकालकारकपुरुषोपग्रहव्यभिचारनिवृत्तिपरत्वात् । लिङ्गव्यभिचारस्तावदुच्यते । स्त्रीलिङ्गे पुल्लिङ्गाभिधानं तारका स्वातिरिति । पुल्लिङ्गे स्त्र्यमिधानं अवगमो विद्येति । स्त्रीत्वे नपुंसकाभिधानं वीणा आतोद्यमिति । नपुंसके स्त्र्यमिधानं आयुधं शक्तिरिति । पुल्लिङ्गे नपुंसकाभिधानं पटो वस्त्रमिति । नपुंसके पुल्लिङ्गाभिधानं आयुधं परशुरिति । संख्याव्यभिचारः, एकत्वे द्वित्वं नक्षत्रं पुनर्वसू इति । एकत्वे बहुत्वं नक्षत्रं शतभिषज इति । द्वित्वे एकत्वं गोदौ ग्राम इति । द्वित्वे बहुत्वं पुनर्वसू बाद अर्थके ग्रहण करनेमें समर्थ शब्दनय है, क्योंकि, यह नय लिंग, संख्या, काल, कारक, पुरुष और उपग्रहके व्यभिचारकी निवृत्ति करनेवाला है। स्त्रीलिंगके स्थानपर पुल्लिंगका कथन करना और पुल्लिंगके स्थानपर स्त्रीलिंगका कथन करना आदि लिंगव्याभिचार है। जैसे, 'तारका स्वातिः' स्वाति नक्षत्र तारका हैं। यहां पर तारका शब्द स्त्रीलिंग और स्वाति शब्द पुल्लिंग है। इसलिये स्त्रीलिंगके स्थानपर पुल्लिंग कहनेसे लिंगव्यभिचार है। ' अवगमो विद्या' ज्ञान विद्या है। यहां पर अवगम शब्द पुल्लिंग और विद्या शब्द स्त्रीलिंग है। इसलिये पुल्लिंगके स्थानपर स्त्रीलिंग कहनेसे लिंगव्यभिचार है। 'वीणा आतोद्यम्' वीणावाजा आतोद्य कहा जाता है। यहां पर वीणा शब्द स्त्रीलिंग और आतोद्य शब्द नपुंसकलिंग है। इसलिये स्त्रीलिंगके स्थानपर नपुंसकलिंगका कथन करनेसे लिंगव्यभिचार है। 'आयुधं शक्तिः' शक्ति आयुध है । यहां पर आयुध शब्द नपुंसकलिंग और शक्ति शब्द स्त्रीलिंग है। इसलिये नपुंसकलिंगके स्थानपर स्त्रीलिंगका कथन करनेसे लिंगव्यभिचार है। 'पटो वस्त्रम् ' पट वस्त्र है। यहां पर पट शब्द पुल्लिंग और वस्त्र शब्द नपुं. सकलिंग है। इसलिये पुलिंगके स्थानपर नपुंसकलिंगका कथन करनेसे लिंगव्यभिचार है। 'आयुधं परशुः' फरसा आयुध है। यहां पर आयुध शब्द नपुंसकलिंग और परशु शब्द पुलिंग है। इसलिये नपुंसकलिंगके स्थानपर पुल्लिंगका कथन करनेसे लिंगव्यभिचार है। ___ एक वचनकी जगह द्विवचन आदिका कथन करना संख्याव्यभिचार है । जैसे, 'नक्षत्र पुनर्वसू ' पुनर्वसू नक्षत्र है। यहां पर नक्षत्र शब्द एक वचनान्त और पुनर्वसू शब्द द्विवचनान्त है। इसलिये एकवचनके स्थानपर द्विवचनका कथन करनेसे संख्याव्यभिचार है। ' नक्षत्र शतभिषजः' शतभिषज नक्षत्र है। यहां पर नक्षत्र शब्द एकवचनान्त और शतभिषज् शब्द बहुवचनान्त है। इसलिये एकवचनके स्थानपर बहुवचनका कथन करनेसे संख्याव्यभिचार है १ लिङ्गसंख्यासाधनादिव्यभिचारनिवृत्तिपरः शन्दनयः। स. सि. १, ३३. शपत्यर्थमाह्वयति प्रत्यायतीति शब्दः । त. रा. वा. १, ३३. कालादिभेदतोऽर्थस्य भेदं यः प्रतिपादयेत् । सोऽत्र शब्दनयः शब्दप्रधानत्वादुदाहृतः॥ त. श्लो. वा. १, ३३, ६८. कालकारकलिङ्गसंख्यासाधनोपग्रहभेदाद्भिन्नमर्थ शपतीति शब्दो नयः । प्र. क. मा. पृ. २०६. विरोधिलिङ्गसंख्यादिभेदादिनस्वभावताम् । तस्यैव मन्यमानोऽयं शब्दः प्रत्यवतिष्ठते ।। स.त. टी. पृ.३१३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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