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________________ ७८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १, १. नासिपरश्वादयस्तेषामादानपदेऽन्तर्भावात् । सहचरितत्वविवक्षायां भवन्तीति चेन्न, सहचरितस्वविवक्षायां तेषां नामपदनाम्नोऽन्तर्भावात् । क्षेत्रसंयोगपदानि', माथुरः वालभः दाक्षिणात्यः औदीच्य इत्यादीनि, यदि नामस्वनाविवक्षितानि भवन्ति । कालसंयोगपदानि यथा, शारदः वासन्तक इत्यादीनि । न वसन्तशरद्धेमन्तादीनि तेषां नामपदेऽन्तर्भावात् । भावसंयोगपदानि, क्रोधी मानी मायावी लोभीत्यादीनि । न शीलसादृश्य भाते हैं। असि, परशु इत्यादि द्रन्यसंयोगपदनाम नहीं हैं, क्योंकि, उनका आदानपदमें भन्तर्भाव होता है। शंका-सहचारीपनेकी विवक्षामें असि, परशु आदिका संयोगपदनाममें अन्तर्भाय हो जायगा? समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि, सहचारीपनेकी विवक्षा होने पर उनका नामपदमें भन्तर्भाव हो जाता है। माथुर, बालभ, दाक्षिणात्य भौर औदीच्य इत्यादि क्षेत्रसंयोगपदनाम हैं, क्योंकि, मथुरा आदि क्षेत्रके संयोगसे माथुर आदि संक्षाएं व्यवहारमें आती हैं । जब माथुर आदि संज्ञाएं नामरूपसे विवक्षित न हो तभी उनका क्षेत्रसंयोगपदमें अन्तर्भाव होता है, भन्यथा नहीं। शारद, वासन्तक इत्यादि कालसंयोगपदनाम हैं, क्योंकि, शरद् और वसन्त ऋतुके संयोगसे ये संज्ञाएं व्यवहारमें आती है। किंतु वसन्त, शरद् हेमन्त इत्यादि संक्षाओंका कालसंयोगपदनामों में प्रहण नहीं होता है, क्योंकि, उनका नामपदमें अन्तर्भाव हो जाता है। ___क्रोधी, मानी, मायावी और लोभी इत्यादि नाम भावसंयोगपद हैं, क्योंकि, क्रोध, मान, माया और लोभ आदि भावोंके निमित्तसे ये नाम व्यवहारमें आते हैं। किंतु जिनमें सचित्ते गोहिं गोमिए, महिसीहि . महिसए, ऊरणीहि ऊरणीए, उट्टीहिं उट्टीवाले, से तं सचिरो । से किं तं अथिते ? अचित्ते छत्तेण छती, दंडेण दंडी, पडेण पडी, घडेण घडी, कडेण कडी से तं अचित्ते । से किं तं मीसए ? मीसए इलेणं हालिए, सगडेणे, सागडिए, रहेणं रहिए, नावाए नाविए, से तं दव्य संजोगे । अनु. १, १२९. १से किं तं खेत्तसंजोगे ? भारहे, एवए, हेमए, एरण्णवए, हरिवासए, रम्मगवासए, देवकुरुए, उत्तरकुरुए, पुव्वविदेहए अपरविदेहए । अवा मागहे, मालबए, सोरट्ठए, मरहट्ठए, कुंकुणए, से तं खेत्तसंजोगे। अनु. १, १३०. २से किं तं कालसंजोगे ? सुसमसुसमाए, सुसमाए, सुसमदुसमाए, दुसमसुसमाए, दुसमाए, दुसमदुसमाए। अहवा-पावसए, वासारत्तए, सरदए, हेमंतए, वसंतए, गिम्हए, से तं कालसंजोगे | अनु. १, १३१. से कितं मावसंजोगे? दविहे पुण्णत्ते, तं जहा, पसत्थे अ अपसत्थे असे किंतं पसत्थे? नाणेणं णाणी. दसणेणं दसणी, चरित्तेणे चरित्ती से ते पसत्थे । से किं तं अपसत्थे ? कोहेणं कोही, माणेणं माणी, मायाए मायी, लोहेर्ण लोही से तं अपसत्ये, से तं भावसंजोगे । से तं संजोएणं । अनु. १, १३२, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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