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१, १, १. संत-परूवणाणुयोगद्दारे सुत्तावयरणं
[७५ नामानि । आदानपदं नाम आत्तद्रव्यनिवन्धनम् । नैतद्गणनाम्नोऽन्तर्भवति तत्रादानादेयत्वविवक्षाभावात् । भावे वा न तद्गुणाश्रितमादानपदनाम्नोऽन्तर्भावात् । पूर्णकलश इत्येतदादानपदम् । नादानपदम् । तद्यथा, घटस्य कलश इति संज्ञा नात्तद्रव्यादिमाश्रिता तस्यास्तथाविधविवक्षामन्तरेण प्रवृत्तायाः समुपलम्भात् । न पूर्णशब्दोऽपि तस्य पर्याप्तवाचकत्वेन गुणनाम्नोऽन्तर्भावात् । नोभयसमासोऽपि तस्य भावसंयोगेडन्तर्भावादिति न, जलादिद्रव्याधारत्वविवक्षायां पूर्णकलशशब्दस्यादानपदत्वाभ्युप
विशेषार्थ-जिन मनुष्योंके चन्द्रस्वामी आदि नाम रक्खे जाते हैं। उनमें चन्द्र आदिका न तो स्वामीपना पाया जाता है और न इन्द्र के वे रक्षक ही होते हैं। केवल ये नाम रूढ़िसे रक्खे जाते हैं। इनमें गुणादि की कुछ भी प्रधानता नहीं पायी जाती है, इसलिये इन्हें नोगौण्यपदनाम कहते हैं।
ग्रहण किये गये द्रव्य के निमित्तसे जो नाम व्यवहार में आते हैं, अर्थात् जिनमें द्रव्यके निमित्तकी अपेक्षा होती है उन्हें आदानपदनाम कहते हैं।
विशेषार्थ- आदानपदनामों में, संयोगको प्राप्त हुए द्रव्यके निमित्तसे उत्पन्न हुई अवस्थाविशेषकी वाचक संज्ञाएं ली जाती हैं। अर्थात् आदान-आदेय भावकी मुख्यतासे जो नाम प्रचलित होते हैं उन्हें आदानपदनाम कहते हैं।
इस आदानपदनामका गुणनाममें अन्तर्भाव नहीं हो सकता है, क्योंकि, गुणनामोंमें आदान-आदेय भावकी विवक्षा नहीं रहती है। यदि गुणनामों में भी आदान-आदेय भावकी विवक्षा मान ली जाय तो गौण्यपदनाम गुणाश्रित नहीं रह सकते हैं, क्योंकि, आदान-आदेय भावकी मुख्यतासे उनका आदानपदनामों में अन्तर्भाव हो जायगा। - 'पूर्णकलश' इस पदको आदानपदनाम समझना चाहिये।
शंका-'पूर्णकलश' यह आदानपदनाम नहीं हो सकता है। इसका खुलासा इसप्रकार है, घटकी 'कलश' यह संज्ञा ग्रहण किए गये किसी द्रव्यादिके आश्रयसे नहीं है, क्योंकि, 'कलश' इस संज्ञाकी द्रव्यादिकके निमित्तकी विवक्षाके विना ही प्रवृत्ति देखी जाती है । इसीतरह 'पूर्ण' यह शब्द भी आदानपदनाम नहीं हो सकता है, क्योंकि, 'पूर्ण' यह शब्द पर्याप्तका वाचक होनेसे उसका गौण्यपदनाममें अन्तर्भाव हो जाता है। एर्ण और कलश इन दोनोंका समास भी आदानपदनाम नहीं हो सकता है, क्योंकि, उसका भावसंयोगमें अन्तर्भाव हो जाता है?
समाधान-ऐसी शंका करना उचित नहीं है, क्योंकि, जलादि द्रव्य के आधारपनेकी विवक्षामें 'पूर्णकलश' इस शब्दको आदानपदनाम माना गया है।
से किं तं आयाणपदेण? धम्मो मंगलं, चूलिया चाउरंगिज असंखयं आवती तस्थिन्ज अर्ज जपणहज परिसइज्ज एल्लइज्जं वीरयं धम्मो मग्गो समोसरणं गत्थो जं महियं से आयाणपएणं, अन.१,१२८.
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