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________________ ७४ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, १, १. इदं पुण जीवाणं खंड - सिद्धतं पहुच पुव्वाणुपुच्चीए हिदं छण्हें खंडाणं पढम -खंड जीवाणमिद | वेदणा-कसिण- पाहुड-मज्झादो अणुलोम-विलोम - कमेहि विणा जीवद्वाणस्स संतादि-अहियारा अहिणिग्गया त्ति जीवहाणं जत्थतत्थाणुपुत्रीए वि संठिदं । जीवट्ठाणे ण पच्छा पुव्वी संभवइ । 1 णामस्स दस द्वाणाणि भवंति । तं जहा, गोण्णपदे गोगोण्णपदे आदाणपदे पडिवक्खपदे अगादियसिद्धंतपदे पाधण्णपदे णामपदे पमाणपदे अवयवपदे संजोग पदे चेदि । गुणानां भावो गौण्यम् । तद् गौण्यं पदं स्थानमाश्रयो येषां नाम्नां तानि गौण्यपदानि । यथा, आदित्यस्य तपनो भास्कर इत्यादीनि नामानि । नोगौण्यपदं नाम गुणनिरपेक्षमनन्वर्थमिति यावत् । तद्यथा, चन्द्रस्वामी सूर्यस्वामी इन्द्रगोप इत्यादीनि समान वर्णवाले, हरिवंशके प्रदीप, और शिवादेवी माताके लाल ऐसे नेमिनाथ भगवान् जयवन्त ॥ ६६ ॥ इत्यादि यथातथानुपूर्वीका उदाहरण समझना चाहिये । यह जीवस्थान नामक शास्त्र खण्ड सिद्धान्तकी अपेक्षा पूर्वानुपूर्वी क्रमसे लिखा गया है, क्योंकि, षट्खण्डागममें जीवस्थान प्रथम खण्ड है । वेदनाकषायप्राभृतके मध्यसे अनुलोम और विलोमक्रमके विना जीवस्थानके सत्, संख्या आदि अधिकार निकले हैं, इसलिये जीवस्थान यथातथानुपूर्वी में भी गर्भित है । किंतु इस जीवस्थान खण्डमें केवल पश्चादानुपूर्वी संभव नहीं है । नाम-उपक्रम दश भेद होते हैं । वे इसप्रकार हैं-गौण्यपद, नोगोण्यपद, आदानपद, प्रतिपक्षपद, अनादिसिद्धान्तपद, प्राधान्यपद, नामपद, प्रमाणपद, अवयवपद और संयोगपद । गुणों भावको गौण्य कहते हैं। जो पदार्थ गुणोंकी मुख्यता से व्यवहृत होते हैं वे गौण्यपदार्थ हैं । वे गौण्य पदार्थ पद अर्थात् स्थान या आश्रय जिन नामोंके होते हैं उन्हें गौण्यपदनाम कहते हैं । अर्थात् जिस संज्ञाके व्यवहारमें अपने विशेष गुणका आश्रय लिया जाता है उसे गौण्यपदनाम कहते हैं । जैसे, सूर्यकी तपन और भास् गुणकी अपेक्षा तपन और भास्कर इत्यादि संज्ञाएं हैं। जिन संज्ञाओं में गुणोंकी अपेक्षा न हो, अर्थात् जो असार्थक नाम हैं उन्हें नोगौण्यपदनाम कहते हैं । जैसे, चन्द्रस्वामी, सूर्यस्वामी, इन्द्रगोप इत्यादि नाम । १ से किं दसनामे पण्णत्ते ? तं जहा, गोण्णे नोगोपणे आयाणपरणं पडिवक्खपणं पहाणयाए अणाइअसिद्धतेणं नामेणं अवयवेणं संजोगेणं पमाणेणं । अनु. १, १२७. २ से किं तं गोणे ? गोणे खमइ त्ति खमणो, तपइति तपणो, जलइ त्ति जलगो, पवइ त्ति पत्रणो । से तं गोणे । अनु. १, १२८. ३ नो गोणे अकुंतो सकुंतो अमुग्गो समुग्गो अलालं पलालं अकुलिया सकुलिया अमुद्दो समुद्दो नोपलं अम ति पलासं, अमाति बाहए माइबाहए, अबीय वावए बीयावावए, नो इंदगोवइए त्ति इंदगोवे से चं नो गोणे | अनु. १, १२८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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