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________________ भुजगारबंधे कालागमो ५५ 1 ओघं । सेसाणं णिरयादि याव अणाहारग त्ति सत्तण्णं क० भुज० - अप्प ० - अवट्ठि० को होदि ? अण्ण० । आउ० ओघं । वेउव्त्रियमि० सत्तण्णं क० आहारमि० अट्टष्णं क० कम्मइ ० - अणाहार० सत्तण्णं क० भुज० को होदि ? अण्णदरो । एवं सामित्तं समत्तं । कालानुगमो १०४. कालानुगमेण दुवि० – ओवे आदे० | ओघे० सत्तण्णं क० भुज-अप० ज० ए०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि० पवाइअंतेण उवदेसेण ज० ए०, उ० ऍकारससमयं । अण्ण पुण उवदेसेण ज० ए०, उ० पण्णारससमयं । अवत्त० एगसमयं । आउ० भुज - अप्प० जहण्णेण एग०, उ० अंतो० । अवट्ठि० ज० एग०, उ० सत्तसमयं अवत्त० ज० [अ०] ए० । शेष नारकियोंसे लेकर अनाहारक तककी मार्गणाओंमें सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका बन्धक कौन है अन्यतर जीव इनका बन्धक है । आयुकर्मका भङ्ग ओधके समान है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में सात कर्मोंके, आहारकमिश्र काययोगी जीवोंमें आठ कर्मो के तथा कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में सात कर्मों के भुजगारपदका बन्धक जीव कौन है ? अन्यतर जीव बन्धक है । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । कालानुगम १०४. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश | ओघसे सात कर्मो के भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थितपदका चालू उपदेशके अनुसार जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल ग्यारह समय है । अन्य उपदेशके अनुसार जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पन्द्रह समय है । अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । आयुकर्म के भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य कोल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थितपदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात समय है । अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । विशेषार्थ — ओघसे आठों कर्मो का भुजगार और अल्पतरपद एक समय तक होकर अन्य पद होने लगें यह भी सम्भव है और अन्तर्मुहूर्त तक विवक्षित पद होकर अन्य पद होने लगें यह भी सम्भव है, क्योंकि असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानि आदिका जघन्य काल एक समय है और असंख्यातगुणवृद्धि तथा असंख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा इन कर्मोंका पिछले समय में जितना बन्ध हुआ है अगले समय में भी उतना ही बन्ध होकर आगे बन्धकी परिपाटी बदल जाय यह भी सम्भव है और चालू उपदेशके अनुसार अधिकसे अधिक ग्यारह समय तक तथा अन्य उपदेशके अनुसार अधिक से अधिक पन्द्रह समय तक सात कर्मों का और आयुकर्मका अधिक से अधिक सात समय तक लगातार उतना ही बन्ध होता रहे यह भी सम्भव है, इसलिये सात कर्मोंके अवस्थित - पदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल ग्यारह या पन्द्रह समय तथा आयुकर्म के अवस्थित पदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल सात समय कहा है । यहाँ वृद्धि या हानि न होकर लगातार कितने काल तक उतना ही बन्ध होता रहता है इसका विचार कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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