________________
महाबंधे पदेसबंधाहियारे १०५. वेउव्वि०मि० सत्तण्णं क. भुज० ज० उ० अंतो० । एवं आहारमि० सत्तणं क० । आउ० भुज० ज० ए०, उ० अंतो० । अवत्त० ओघं । कम्मइ०-अणाहार० सत्तण्णं क० भुज० ज० ए०, उ० बेसम० ।
१०६. सेसाणं णिरयादि याव असण्णि त्ति ओघं । णवरि केसिं च सत्तण्णं क० अवत्त० णत्थि । अवगद० सत्तण्णं क० ओघं । णवरि मोह० अवढि० ज० ए०, उ० सत्त समयं । एवं सुहुम० छण्णं० । उवसम-सम्मामि० सत्तण्णं क० अवहि० ज० एग०, कालका निर्देश किया है। सब कर्मो का अवक्तव्यबन्ध एक समय तक होता है यह स्पष्ट ही है।
१०५. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मों के भुजगारपदका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहतें है। इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मो के भुजगारपदका काल जानना चाहिये । आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें आयुकर्मके भुजगारपदका जघन्य फाल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्यपदका भङ्ग ओघके समान है। कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में सात कर्मों के भुजगार पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है।
विशेषार्थ-वैक्रियिकमिश्रकाययोग और आहारकमिश्रकाययोगका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है और इनमें सात कर्मोंका एक भुजगारपद होता है, इसलिये इनमें सात कर्मो के भुजगारपदका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। आहारकमिश्रकाययोगमें आयुकर्मका भी बन्ध होता है और यहाँ इनके दो पद सम्भव हैं-भुजगार और अवक्तव्य । यह सम्भव है कि इस योगके दो समय शेष रहने पर आयुकर्मका बन्ध हो और यह भी सम्भव है कि अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहने पर आयुकर्मका बन्ध हो । आयुकर्मका बन्ध कभी भी प्रारम्भ हो। जिस समयमें इसका बन्ध प्रारम्भ होता है उस समय तो अवक्तव्यपद होता है, अतः अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। और द्वितीयादि समयोंमें भुजगारबन्ध होता है। यदि दो समय शेष रहने पर आयुकर्मका बन्ध प्रारम्भ हुआ तो भुजगारका इस योगमें एक समय काल उपलब्ध होता है और अन्तमुहर्त पहलेसे बन्ध प्रारम्भ हुआ तो अन्तर्मुहत काल उपलब्ध होता है। यही कारण है कि यहाँ आयुकर्मके भुजगारपदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। कामणकाययोग और अनाहारकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है। जो एक विग्रहसे जन्म लेता है उसके तो भुजगारपद सम्भव नहीं है, क्योंकि विवक्षित मार्गणाके प्रथम समयसे द्वितीय समयमें जो अधिक बन्ध होता है उसकी भुजगार संज्ञा है, इसलिये दो विग्रहसे जन्म लेनेवालेके भुजगारका एक समय और तीन विग्रहसे जन्म लेनेवालेके भुजगारके दो समय प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि इन दोनों मार्गणाओंमें सात कर्मों के भुजगारपदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय कहा है।
१०६. शेष नरकगतिसे लेकर असंज्ञी तककी मार्गणाओंमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि किन्हीं मार्गणाओंमें सात कर्मोंका अवक्तव्यपद नहीं है। अपगतवेदी जीवोंमें सात काँका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें मोहनीयकर्मके अवस्थितपदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात समय है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायसंतासंयत जीवोंमें छह कर्मोका काल जानना चाहिये। उपशमसम्यग्हष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में सात कर्मों के अवस्थितपदका जघन्य काल एक समय
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org