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________________ ५४ महाबंधे पदेसबंधाहियारे मण-पंचवचि०-कायजोगि-ओरालि०-अवगद०-आभिणि-सुद-ओधि०-मणपज०-संजद चक्खु०-अचक्खु०-ओधिदं०-सुक्कले०-भवसि०-सम्मादि०-खइग०-उवसम०-सण्णिआहारग त्ति। वेउन्वियमि०-आहारमि०-कम्मइ०-अणाहारएसु सत्तण्णं क० अस्थि भुज० एगमेव पदं । सेसाणं णिरयादीणं याव असण्णि त्ति सत्तण्णं क. अत्थि भुज. अप्प० अवहि० । आउ० ओघं । एवं समुकित्तणा समत्ता। सामित्ताणुगमो १०३. सामित्ताणुगमण दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सत्तणं क० भुज०. अप्प०-अवढि० को होदि ? अण्णदरो । अवत्त० को होदि १ अण्णदरो उवसामओ परिवदमाणओ मणुसो वा मणुसी वा पढमसमयदेवो वा । आउ० भुज०-अप्प-अवढि ० को होदि १ अण्णदरो। अवत्त० को होदि ? अण्णदरो पढमसमयआउगबंधओ । एवं पंचिं-तस०२-कायजोगि-लोभक० मोह० आभिणि-सुद-ओधिणा०-चक्खु०-अचक्खु०. ओधिदं-सुक्कले०-भवसि०-सम्मा०-खइग०-उवसम०-सण्णि-आहारग त्ति । मणुस०३. पंचमण-पंचवचि०-ओरा०-मणप०-संजद०-अवगद० सत्तणं क० अवत्त० को होदि ? अण्ण० मणुसो वा मणुसिणी वा उवसामणादो परिवदमाणओ पढमसमयबंधओ। सेसं मनुष्यत्रिक, पंचेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, अपगतवेदी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शकुलेश्यावाले, भव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंमें जानना चाहिये । वक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगो, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सात कर्मोका एकमात्र भुजगार पद है। शेष नरकगतिसे लेकर असंज्ञी तककी मार्गणाओं में सात कर्मो के भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके बन्धक जीव हैं। आयुकर्मका भङ्ग ओघके समान है। ___ १०३. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका बन्धक कौन है ? अन्यतर जीव इन तीन पदोंका बन्धक है। अवक्तव्यपदका बन्धक कौन है ? अन्यतर गिरनेवाला उपशामक मनुष्य और मनुष्यिनी तथा प्रथम समयवर्ती देव अवक्तव्यपदका बन्धक है। आयुकर्मके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका बन्धक कौन है ? अन्यतर जीव उक्त पदोंका बन्धक है। अवक्तव्यपदका बन्धक कौन है ? प्रथम समयमें आयुकर्मका बन्ध करनेवाला अन्यतर जीव अवक्तव्यपदका बन्धक है। इस प्रकार पंचेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, काययोगी, लोभकषायवाले मोहनीयका, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ल लेश्यावाले, भव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंमें जानना चाहिये। मनुष्यत्रिक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, औदारिककाययोगी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत और अपगतवेदी जीवोंमें सात कर्मो के अवक्तव्यपदका बन्धक कौन है? उपशमश्रेणिसे गिरकर प्रथम समयमें इनका बन्ध करनेवाला अन्य मनुष्य और मनुष्यनी इनके अवक्तव्यपदका बन्धक है। शेष भङ्ग ओघके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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