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________________ ४२ महाघे पदेसबंधाहियारे अंतो०, उ० अणुक० भंगो । आउ० देवभंगो । अवगद० सत्तण्णं क० ज० ए०, उ० चत्तारिस० । अज० ज० ए०, उ० अंतो० । ८४. कोधादि ० ४ सत्तण्णं क० ज० ए० । अज० ज० ए०, उ० अंतो । एवं आउ० । ८५. विभंग सत्तणं क० ज० ज० ए०, उ० चत्तारिस० । अज० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० दे० । आउ० देवभंगो । आभिणि-सुद-अधि० सत्तण्णं क० ज० ए० । उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल स्त्रीवेदमें एक समय और पुरुषवेद में अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट कालका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान है । आयुकर्मका भङ्ग देवों के समान है। अपगतवेदी जीवों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ- इन दोनों वेदोंमें सात कर्मों का जघन्य प्रदेशबन्ध इन वेदवाले असज्ञी जीवोंके भवग्रहणके प्रथम समयमें होता है, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है । तथा स्त्रीवेदका जघन्य काल एक समय और पुरुषवेदका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे इनमें सात कर्मों के अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल क्रमसे एक समय और अन्तर्मुहूर्त कहा है। इनमें इनके अजघन्य प्रदेशबन्ध के उत्कृष्ट कालका भङ्ग अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध के उत्कृष्ट कालके समान है यह स्पष्ट ही है। इनमें आयुकर्मका जघन्य प्रदेशबन्ध देवोंके समान घोटमान जघन्य योग से होता है, इसलिये यहाँ आयुकर्मका भङ्ग देवोंके समान जाननेकी सूचना की है। अपगतवेदी जीवों में सात कर्मोंका जघन्य प्रदेशबन्ध घोटमान जघन्य योगसे होता है, इसलिए इसमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेराबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय कहा है । तथा बन्ध करनेवाले अपगतवेदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे इसमें अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । ८४. क्रोधादि चार कषायवाले जीवों में सात कर्मोंके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । आयुकर्मका भङ्ग इसी प्रकार जानना चाहिये । विशेषार्थ — क्रोधादि चार कषायों में ओघके समान भव ग्रहणके प्रथम समय में सात कर्मोंका जघन्य प्रदेशबन्ध होता है, इसलिये इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा इन कषायोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे इनमें सात कर्मों के अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । यहाँ आयुकर्मका भङ्ग इसी प्रकार जाननेकी सूचना की है, सो इसका यह तात्पर्य है कि जिस प्रकार यहाँ सात कर्मो के जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका काल कहा है, उसी प्रकार आयुकर्मके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका काल प्राप्त होता है । कारण स्पष्ट है । ८५. विभङ्गज्ञानी जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है। और उत्कृष्ट काल चार समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट कुछ कम तेतीस सागर है । आयुकर्मका भङ्ग देवोंके समान है । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल ত For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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