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________________ कालपरूवणा अंतो० । एवं आहारमि० सत्तण्णं क० । आउ० ज० ए० । अज० ज० अंतो० । कम्मइ० सत्तणं क० ज० ए० । अज० ज० ए०, उ० तिण्णि स० । एवं अणाहार० । ८३. इत्थि० - पुरिस० सत्तण्णं क० ज० ए० । अज० ज० ए० पुरिस ० ४१ जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार आहारक मिश्रकाययोगी जीवों में सात कर्मोंका भङ्ग जानना चाहिये । आयु कर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काळ एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । कार्मणकाययोगी जीवों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्ध क जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है। और उत्कृष्ट काल तीन समय है । इसीप्रकार अनाहारक जीवोंमें जानना चाहिए । ए०, उ० विशेषार्थ — वैक्रियिक और आहारक काययोगमें सात कर्मो का जघन्य प्रदेशबन्ध शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त होनेके प्रथम समय में होता है, इसलिए यहाँ इनके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा इन योगोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे यहाँ इनके अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । यहाँ विकल्परूपसे इन योगों में सात कर्मोके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय कहा है । सो घोलमान जघन्य योगसे भी जघन्य प्रदेशबन्ध सम्भव है, यह मानकर यह काल कहा है । इस अपेक्षासे भी अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बन जाता है । वैक्रियिककाययोगमें आयुकर्मका जघन्य प्रदेशबन्ध सामान्य देवोंके समान घोलमान जघन्य योगसे होता है, इसलिए इसमें आयुकर्मका भङ्ग सामान्य देवोंके समान कहा है । आहारककाययोगमें आयुकर्मका जघन्य प्रदेशबन्ध शरीर पर्याप्तिके प्रथम समयमें सम्भव है, इसलिये इसके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है । तथा इस योगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त सम्भव होने से इसमें आयुकर्मके अजघन्य प्रदेशवन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। वैक्रियिकमिश्रकाययोग में सात कर्मोंका जघन्य प्रदेशबन्ध भवग्रहणके प्रथम समय में होता है, इसलिये इसके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा इस योगका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिये इसमें अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । आहारकमिश्रकाययोगमें वैक्रियिकमिश्रकाययोगके समान काल घटित हो जाता है, इसलिये आहारकमिश्रमें सात कर्मोंके जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धका काल वैक्रियिकमिश्र के समान जाननेकी सूचना की है। मात्र आहारकमिश्र में आयुकर्मका बन्ध भी सम्भव है, इसलिये उसका काल अलग से कहा है । कार्मणकाययोग में सात कर्मोंका जघन्य प्रदेशबन्ध सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवके प्रथम विग्रहमें होता है, इसलिये इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा इस योगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है, इसलिये इसमें सात कर्मों के अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय कहा है । आहारकों में कार्मणकाययोगियोंके समान व्यवस्था रहनेसे उनमें सब भङ्ग कार्मणकाययोगियों के समान जानने की सूचना की है । Jain Education International ८३. स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवांमें सात कर्मोंके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और ६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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