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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे ८१. ओरालि० सत्तण्णं क० ज० ए०। अज० ज० ए०, उ० बावीस वाससह० । आउ०' णिरयभंगो। ओरा०मि० अपज भंगो। णवरि अज० ज० खुद्दाभ० तिसमऊणं ।। ८२. वेउव्विय०-आहार० सत्तण्णं क० ज० ए०। अज० ज० ए०, उ० अंतो० । अथवा ज ० ज० ए०, उ० चत्तारि स० । अज० ज० ए०, उ० अंतो० । वेउव्वियका० आउ • देवोघं । आहार० आउ० जह० ए० । अज० ज० ए०, उ. अंतो० | वेउवि०मि० सत्तण्णं क० ज० ए०। अज० ज० उ० समय काययोग हुआ है और दूसरे समय में जो सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त होकर जघन्य योगसे सात कर्मों का जघन्य प्रदेशबन्ध करने लगा है, उसके काययोगमें एक समय तक सात को अजघन्य प्रदेशबन्ध होता है, इसलिए इसका जघन्य काल एक समय कहा है और इसका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है,यह स्पष्ट ही है। शेष कथन सुगम है। ८१. औदारिककाययोगी जीवोंमें सात कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। आयकर्मका औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि इनमें अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल तीन समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है। विशेषार्थ--सूक्ष्म निगोद जीवके पर्याप्त होनेके प्रथम समयमें जघन्य योगसे सात कर्मो का जघन्य प्रदेशबन्ध होता है, अतः औदारिक काययोगमें इनके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा औदारिककाययोगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है, इसलिए इसमें सात कर्मों के अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्षेप्रमाण कहा है। यहाँ आयुकम का जघन्य प्रदेशबन्ध नारकियों के समान घोलमान जघन्य योगसे होता है, इसलिए यहाँ इसका भङ्ग नारकियोंके समान अपर्याप्तकोंमें प्रारम्भके तीन समय कार्मणकाययोगके हो सकते हैं, अतः उनसे न्यून शेष समयमें औदारिकमिश्रकाययोग नियमसे रहता है, इसलिए औदारिकमिश्रकाययोगमें मात कर्मो के अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल तीन समय कम झल्लक भवप्रहणप्रमाण कहा है। इसमें शेष भङ्ग अपर्याप्तकोंके समान है,यह स्पष्ट ही है। ८२. वैक्रियिककाययोगी और आहारककाययोगी जीवोंमें सात कर्मो के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूते है। अथवा जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। वैक्रियिककाययोगी जीवों में आयुकर्मका भङ्ग सामान्य वोंके समान है। आहारककाययोगी जीवोंमें आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कोंके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशबन्धका १. ता० प्रा०प्रत्योः वाससह० ज० पाउ० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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