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________________ ३९ कालपरूवणा उ० उ०- वणफ दि णिगोद० सत्तण्णं क० ज० ज० उ० ए० । अज० ज० खुद्दाभ० समऊणं, सेढी असंखे० । आउ • ओघं । एदेसिं बादराणं सत्तण्णं क० ज० ए० । अज० ज० खुद्दाभ० समऊ, उक्क० कम्महिदी० । तेसिं' पञ्जत्ता० सत्तणं क० ज० ए० । अज० ज० अंतो०, उक्क० संखैजाणि वाससहस्साणि । आउ० तिरिक्खभंगो । बादरपतेग० बादरपुढविभंगो । ८०. पंचमण० - पंचवचि० अटुण्णं क० ज० ज० ए०, उ० चत्तारि सम० । अज० ज० ए०, उ० अंतो० । कायजोगि० सत्तण्णं क० ज० ए० । अज० ज० ए०, उक्क० असंखेंज्जा लोगा । आउ० ज० ए० । अज० ज० ए०, उ० अंतो० । निगोदजीव, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्मवनस्पतिकायिक, सूक्ष्म निगोद जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । आयुकर्मका भङ्ग ओघ के समान है । इनके बादरों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट काल कर्मस्थितिप्रमाण है । उनके पर्याप्तकों में सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। आयुकर्मका भङ्ग तिर्यश्र्चों के समान है । बादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवोंका भङ्ग बादर पृथिवोकायिक जीवोंके समान है । विशेषार्थ — कालका खुलासा पहले जिस प्रकार कर आये हैं, उसे ध्यान में रखकर यहाँ भी कर लेना चाहिये । मात्र बादर पर्याप्तनिगोदोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त जानना चाहिए । ८०. पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवोंमें आठ कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्ध का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । काययोगी जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक प्रमाण है । आयुकर्मके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । विशेषार्थ - यहाँ पर पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवोंमें आठकर्मों का जघन्य प्रदेशबन्ध घोलमान जघन्य योगसे होता है, अतः इनके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय कहा है। तथा इन योगोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे यहाँ आठों कर्मों के अजघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य काल एक समय और उकृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । काययोगमें सात कर्मों का जघन्य प्रदेश बन्ध सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवके भवके प्रथम समय में ही सम्भव है, इसलिए इनके जघन्य प्रदेशबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा जिसके मरणके १. ता० आ० प्रत्योः कम्महिंदी० अंगुल० असं० तेसि इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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