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________________ महाबंचे पदेसंबंधाहियारे सुहुमसंप० छण्णं क० ओघं० । असंजदे सत्तण्णं क० उक्क० पदे० क० १ अण्ण० चदुगदिय० पंचिं० सण्णि० सम्मा० मिच्छा० सव्वाहि पज० सत्तविध० उक्क० । एवं आउ० । णवरि अट्ठविध० उक्क० । चक्खु ० तसपजत्तभंगो | ४०. किण्ण० - णील० - काउ० सत्तण्णं क० उक्क० पदे० क० ? अण्ण० तिगदि० पंचिं० सणि० सम्मा० मिच्छा० सत्तविध० उक्क० । एवं आउ० । णवरि अट्ठविध० उक्क० | तेउ०- पम्म० सत्तण्णं क० उक्क० पदे० क० १ अण्ण० तिगदि० सम्मा० मिच्छा० सत्तविध० उक्क० । एवं आउ० । णवरि अट्ठविध० उक० । सुक्काए टण्णं क० ओघं । मोह० तिगदि० सम्मा० मिच्छा० सत्तविध० उक्क० । एवं आउ० । णवरि अट्ठविध० उक्क० । ४१. वेदगे सत्तणं क० उक्क० पदे० क० ? अण्ण० चदुर्गादि० सत्तवि० उक्क० । २० गतिका जीव उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी होता है । सूक्ष्मसाम्परायिकसंयतों में छह कर्मोंका भंग ओघके समान है । असंयत जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका पचेन्द्रिय संज्ञी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सब पर्याप्तियों से पर्याप्त है, सात प्रकार के कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयु कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । चक्षुदर्शनवाले जीवोंमें सपर्याप्तकोंके समान भंग है । ४०. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तीन गतिका पञ्चेन्द्रिय संज्ञी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त सात कर्मोके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । पीत और पद्मलेश्यावाले जीवों में सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तीन after सम्यष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त सात कर्मोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकार के कमका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । शुक्ललेश्या में छह कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी ओघके समान है । मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो तीन गतिका सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसीप्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकार के कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । ४१. वेदकसम्यक्त्वमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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