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सामित्तपरूवणा
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एवं आउ० । णवरि अडविध० उक्क० । उवसम० छण्णं क० उ० प० क० १ सुहुमसं० उवसाम० छव्विध० उक्क० । मोह ० ' उक्क० चदुगदि ० सत्तविध० उक्क० । सासणे सत्तण्णं क० उक्क० पदे० क० ? अण्ण० चदुगदि० सत्तविध० उक्क० । एवं आउ । णवरि अडविध० उ० । सम्मामि० सत्तण्णं क० उ० पदे० क० १ अण्ण० चदुर्गादि० सत्तविध० उक्क० ।
४२. सणीसु छष्णं क० ओघं । मोह० उक्क० चदुर्गादि० सम्मा० मिच्छा० र सत्तविध० उक्क० | एवं आउ० । गवरि अडविध उक्क० । असण्णीसु सत्तण्णं क० उक्क० पदे ० क० ? अण्ण० पंचिं० सव्वाहि पज्ज० सत्तविध० उक्त० । एवं आउ० । अवस्थित है, वह उक्त सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसीप्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । उपशमसम्यक्त्वमें छह कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो सूक्ष्मसाम्पराय उपशामक जीव छह प्रकार के कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त छह कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। मोहनीयकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो चार गतिका जीव सात प्रकारके कर्मों का र रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध में अवस्थित है, वह मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । सासादनसम्यक्त्वमें सात प्रकारके कर्मोके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका जीव सात प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसीप्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । सम्यग्मिथ्यात्व में सात कर्मों प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका जीव सात प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त सात कर्मोके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है |
४२. संज्ञी जीवोंमें छह कर्मोंका भंग ओघके समान है । मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो चार गतिका सम्यग्ग्रष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध का स्वामी जानना चाहिए | इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध कर रहा है और उकृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्म के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । असंज्ञी जीवों में सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर पंचेन्द्रिय जीव सब पर्याप्तियों से पर्याप्त है, सात प्रकारके कर्मो का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह उक्त सात कर्मोंके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार आयु आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध में अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट
१. ता० प्रतौ छग्विध० मोह० इति पाठः । २. आ०प्रतौ सम्मामि मिच्छा० इति पाठः ।
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