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________________ सामित्तपरुवणा णवरि अहविध० उक्क० । ३८. मदि-सुद-विभंग०-अभवसि०-मिच्छा० सत्तण्णं० क० उक्क० पदे० क. ? अण्ण० चदुगदि० सण्णिस्स सत्तविध० उक्क० । एवं आउ० । णवरि अढविध० उक्क० । आभिणि-सुद-ओधि० छण्णं क० ओघं । मोह० उ० पदे० क० ? अण्ण० चदुगदि० सत्तविध० उक्क०जोगि० । एवं आउ० । णवरि अट्ठविध० उक्क० । एवं ओधिदं०सम्मा०-खइग० । मणपज० छण्णं० ओघं । मोह० उ० पदे० क'० ? अण्ण० सत्त विध० उक्क० । एवं आउ० । णवरि अहविध० उक्क० । एवं संजदा० । ३९. सामाइ०-छेदो० सत्तण्णं क. अण्ण० सत्तविध० उक्क० । एवं आउ० । णवरि अहविध० उक्क० । एवं परिहार० । एवं चेव संजदासंजदा० । णवरि दुगदियस्स । आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है,वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। ३८. मत्मज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सात प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका संज्ञी जीव सात प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह उक्त कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें छह प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी ओघके समान है । मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका जीव सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट योगवाला है ,वह मोहनीय उत्कृष्ट प्रदशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकमके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले, सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें छह कर्मोंका भंग ओघके समान है । मोहनीयके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जीव सात प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशवन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिये। ३९. सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जीव सात प्रकारके कर्मोका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह उक्त कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि जो आठ प्रकारके कर्मोको बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार संयतासंयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि संयतासंयतोंमें दो १. ता०प्रती उ० ५० उक. इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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