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महाबंधे पदेसबंधाहियारे आउ० । णवरि अहविध० उक्क० । एवं आहारमि० । णवरि से काले सरीरपजत्तिं गाहिदि ति उक्क० । कम्मइ० सत्तण्णं क० उ० पदे० क० ? अण्ण० चद्गदिय० पंचिं० सण्णि० मिच्छा० सम्मा० सत्तविध० उक्क० ।
३६. इत्थि०-पुरिस० सत्तणं क० उ० पदे० क० ? अण्ण. तिगदि० सण्णि. मिच्छा० वा० सम्मा० वा सत्तविध० उक्क० । णqसगे सत्तण्णं कम्माणं उक० पदे० क० ? सम्मा० मिच्छा. तिगदि० सण्णि. सत्तविधवं० उ०। एवं० आउ० । णवरि अट्ठविधः । अवगदवे० छण्णं क० ओघ । मोह० उ० पदे० कस्स ? अण्ण अणियट्टि० सत्तविध० उक० ।
३७. कोध-माण-माया० सत्तण्णं क० उक्क० पदे० क० ? अण्ण० चदुगदिय० पंचिं० सण्णि० सम्मा० मिच्छा० सव्वाहि पन्ज. सत्तविध० उक्क० । एवं आउ० ।
है ? जो अन्यतर जीव सात कर्मों का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह सात प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो आठ कर्मो का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो तदनन्तर समयमें शरीरपर्याप्ति ग्रहण करनेवाला है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह उक्त कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। कार्मणकाययोगी जीवों में सात प्रकारके कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका पश्चेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मो का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है,वह उक्त कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है।
३६. स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें सात प्रकारके कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तीन गतिका संज्ञी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है वह उक्त कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। नपुंसकवेदी जीवोंमें सात प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि तीन गतिका संज्ञी जीव सात प्रकारके कर्माका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह उक्त कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार इन तीनों वेदवाले जीवोंमें आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिये। इतनो विशेषता है कि वह आठ प्रकारके कर्मों का बन्ध करनेवाला होता है। अपगतवेदी जीवोंमें छह प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी ओघके समान है। मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अनिवृत्तिकरण जीव सात प्रकारके कर्मोंका बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह सात प्रकारके कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है।
३७. क्रोध, मान और मायाकषायवाले जीवोंमें सात प्रकारके कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर चार गतिका पञ्चेन्द्रिय संज्ञी सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, सात प्रकारके कर्मो का बन्ध कर रहा है और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धमें अवस्थित है, वह उक्त कर्मो के उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार आयुकर्मके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो
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