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________________ ३५४ महाबंधे पदेसबंधाहियारे भागाभागपरूवणा ५७०. भागाभागं दुविधं-जह० उक्स्स यंच। उक्कस्सए पगदं० । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सव्वपगदीणं उक्कस्तपदेसबंधगा जीवा सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? अणंतभागो । अणु० सव्वजी० अणंता भागा। णवरि तिण्णिआउ०-वेउन्वि०छ०-तित्थ० उक्क० पदे०६० सव्यजी० केव० ? असंखेंजदिभागो। अणु० पदे०७० सव्वजी० केव० ? असंखेंजा भागा । आहार०२ उक्क० पदे०७० सव्वजीवाणं केव० ? संखेजदिभागो। अणु० पदे०बं० सव्वजी० केव० संखेंजा भागा। एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं कायजोगि-ओरालि०-ओरालिमि०-कम्मइ०-णवूस०-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०जाव निरन्तर पाये जाते हैं, इसलिए इनके भङ्गविचयका विचार स्वतन्त्र रूपसे किया है। यहाँ मूलमें सामान्य तिर्यश्च आदि अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनमें यह ओघप्ररूपणा अविकल बन जाती है, इसलिए उनकी प्ररूपणा ओघके समान जाननेकी सूचना की है। मात्र औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारकमार्गणामें वैक्रियिकपश्चकका जघन्य प्रदेशबन्ध और अजघन्य प्रदेशबन्ध कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता । तथा कदाचित् इनका बन्ध करनेवाला कोई जीव नहीं पाया जाता और कदाचित् इनका बन्ध करनेवाले एक व नाना जीव पाये जाते हैं, इसलिए यहाँ इनके उत्कृष्टके समान जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्धकी अपेक्षा आठ-आठ भङ्ग बन जाते हैं, इसलिए इन तीन मार्गणाओंमें इस प्ररूपणा को उत्कृष्टके समान जाननेकी सूचना की है। यहाँ जिन मार्गणाओंका नामनिर्देश करके भङ्गविचयकी प्ररूपणा की है, उनके सिवा अन्य जितनी मार्गणाएँ शेष रहती हैं, उनमें उत्कृष्टके समान भङ्ग है, ऐसा कहनेका यही तात्पर्य है कि जिस प्रकार उत्कृष्ट प्ररूपणाके समय इन मार्गणाओंमें तीन आयुओंके सिवा शेष सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धके तीन-तीन भङ्ग कहे हैं और तीन भायुओंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धकी अपेक्षा आठ आठ भङ्ग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी जानने चाहिए। __इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय समाप्त हुआ। भागाभागप्ररूपणा ५७०. भागाभाग दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निदेश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेश बन्ध करनेवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव सब जीवोंके अनन्त बहुभाग प्रमाण हैं। इतनी विशेषता है कि तीन आयु, वैक्रियिकषट्क और तीर्थङ्करप्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध कस्नेवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । आहारकद्विकका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं। अनुस्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यश्च, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, १. ता.आ०प्रत्योः 'अणंतभागा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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