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________________ २७० महाबंधे पदेसबंधाहियारे तु० संखेंजदिभागणं बं० । वेउन्वि०-आहार०२-[ वण्ण४-अगु०-उप०.] णिमि०-तिस्थ० सिया० तं० तु. संखेजदिभागूणं बं० । वेउव्वि०अंगो० सिया० तंतु० सादिरेयं दिवड्डभागणं बं० । एवं चदणाणा०-पंचंत'। ४२९. णिहाणिदाएँ उक्क० पदेब पंचणा०-दोदंस-मिच्छ०-अणंताणु०४. पंचंत० णि बं० णि० उक० । छदंस०-अहक०-भय-दु० णि बं० अणंतभागणं० बं०। दोवेदणी०-इत्थि०-णबुंस०-वेउव्वियछ०-आदाव०-दोगोद० सिया० उक० । कोधसंज० णि० ब० णि० अणु० दुभागणं० ब० । तिण्णिसंज० णि वणि सादिरेयं दिवट्ठभागणं ब। पुरिस-जस० सिया० संखेंजगुणहीणं० । चदणोक० सिया० अणंतभागणं बं०। दोगदि-पंचजादि-ओरालि०-छसंठा०-ओरालि अंगो०छस्संघ०-दोआणु०-पर०-उस्सा०-उजो०-[ दोविहा०-] तसादिणवयुग०-अजस०-सिया० करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। वैक्रियिकशरीर, आहारकद्विक, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और तीर्थङ्करप्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। वैक्रियिक शरीर आङ्गोपाङ्गका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशवन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इसका नियमसे साधिक डेढ़ भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। इसी प्रकार चार ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायकी मुख्यतासे सन्निकप जानना चाहिए। ४२९. निद्रानिद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, दो दर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, आठ कपाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो वेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, वैक्रियिकपटक, आतप और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। क्रोधसंज्वलनका नियमसे बन्ध करता है जो इसका नियमसे दो भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तीन संज्वलनोंका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे साधिक डेढ़ भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पुरुषवेद और यशःकीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। दो गति, पाँच जाति, औदारिकशरीर, छह संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छास, उद्योत, दो विहायोगति, बस आदि नौ युगल और अयशःकीर्तिका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेश बन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता १. तापा०प्रत्योः 'चदुणोक पंचंत०' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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