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__ महाबंधे पदेसबंधाहियारे अप्पसत्थ०-दुस्सर० सिया० उक्क० । छदंस०-बारसक०भय-दु० णि. बं० तंन्तु० अणंतभागूणं बं० । पंचणोक०' सिया० तंन्तु० अणंतभागूणं बं० । पंचिंदि०-तेजा०क०-वण्ण०४-अगु०४-तस०४-णिमि० णि. बं० णि. संखेंज दिभागूणं च । मणुस'.-ओरालि०-डंड०-ओरालि अंगो०-असंपत्त०-मणुसाणु०-थिरादितिण्णियुग०दुभग-अणादें सिया० संखेजदिभागूणं बं० । देवगदि०४-समचदु०-वजरि०-पसत्थ.. सुभग-सुस्सर-आदें-तित्थ० सिया० तंतु० संखेंजदिभागूणं बं०।।
४०९. इत्थिवे. आभिणि० उक्क० पदे०७० चदुणा-पंचंत. णि. 4 णि. उक्क० । थीणगिद्धि०३-अणंताणु०४-इत्थि०-णqस०-णिरय-णिरयाणु०-आदाव०-तित्थ०दोगोद० सिया० उक्क० । णिद्दा-पयला-अट्ठक०-छण्णोक० सिया० त० तु. अणंतभागणं बं० । चदुसंज० णि ५० णि तंतु० अणंतभागूणं च । पुरिस-जस० अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेश बन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पाँच नोकषायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो नियमसे इनका अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। पश्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, सचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । मनुष्यगति, औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान, औदारिक शरीर आङ्गोपाङ्ग, असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, स्थिर आदि तीन युगल, दुर्भग और अनादेयका कदाचित् बन्ध करता है जो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । देवगतिचतुष्क, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रर्षभनाराचसंहनन प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर आदेय और तीर्थङ्कर प्रकृतिका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन
अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्धक
४०९. स्त्रीवेदी जीवों में आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव चार ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, आतप, तीर्थङ्कर और दो गोत्रका कदाचित् बन्ध करता है। यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। निद्रा, प्रचला, आठ कषाय और छह नोकपायका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। चार संज्वलनका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और
१. ता प्रा०पत्योः 'बं० । चदुणोक०' इति पाठः । २. श्रा०प्रती 'भणंतभागूणं बं० मणुस.' इति पाठः।
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