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________________ उत्तरपगदिपदेसबंधे सण्णियासं २२९ तिरिक्ख ० छस्संठा ० - छस्संघ० - तिरिक्खाणु ० दोविहा०-थिरादिछयुग ० सिया० तं तु० संदिभागणं ब० । पंचिंदि०-ओरालि० - तेजा० क० - ओरालि० अंगो० वण्ण०४अगु०४-तस०४ - णिमि० णि० बं० तं तु० संखेअदिभागूणं बं० । एवं चदुणा०दोवेदणी ० - पंचत० । ३५६. णिद्दाणिद्दाए उक्क० पदे०चं० पंचणा० दोदंस० - मिच्छ० - अनंताणु०४णीचा० - पंचंत० णि० बं० णि० उक्क० । छदंस० ०-बारसक०-४ -भय-दु० ० णि० बं० णि० अनंतभागूणं वं० । दोवेद० - इत्थि० बुंस० उजो० सिया० उक्क० । पंचणोक० सिया० ब ० अणंतभागूणं वं० । तिरिक्ख० - पंचिंदि ० -ओरालि०-तेजा ओरालि० अंगो०-वण्ण०४-तिरिक्खाणु० -अगु०४-तस०४ - णिमि' ० णि० बं० संखेज दिभागूणं वं० । छस्संठा ० - उस्संघ० दोविहा० - थिरादिछयुग० सिया० करता है और कदाचित बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागद्दीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तिर्यगति, छह संस्थान, छह संहनन, तिर्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता। यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियम से संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । पश्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैनखशरीर, कार्मणशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रस चतुष्क और निर्माण का नियमसे बन्ध करता है । किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । इसी प्रकार चार ज्ञानावरण, दो वेदनीय और पाँच अन्तराय की मुख्यता से सन्निकर्ष कहना चाहिए । ० क० तं तु ० तं तु ० ३५६. निद्रानिद्राका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, दो दर्शनावरण, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय और जुगुप्साका नियमसे बन्ध करता है जो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । दो वेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और उद्योतका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । पाँच नोकषायांका कदाचित् बन्ध करता है । यदि बन्ध करता है तो इनका नियमसे अनन्तभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तिर्यगति, पचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्ण चतुष्क, तिर्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क और निर्माणका नियमसे बन्ध करता है। किन्तु वह इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है तो इनका नियमसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है। छह संस्थान, छह संहनन, दो विहायोगति और स्थिर आदि छह युगलका कदाचित् बन्ध करता है और कदाचित् बन्ध नहीं करता । यदि बन्ध करता है तो उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी करता है। यदि अनुत्कृष्ट १. आ० प्रतौ 'वण्ण४ अगु० तस४ णिमि०' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001393
Book TitleMahabandho Part 6
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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